अनंतानंद है विश्वास हनुमद्भक्ति है
भारती भावों में परम अनुरक्ति है
फिर और क्या कुछ चाहिए दाता मुझे
(जब)
"युगभारती" के साथियों की शक्ति है ।
--- ओम शङ्कर
प्रस्तुत है प्रणायक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी
*तुम्ह मम सखा भरत सम भ्राता। सदा रहेहु पुर आवत जाता॥*
का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 11-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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*590 वां* सार -संक्षेप
1=पथ -प्रदर्शक
सतोगुणी पोषण से समाज-वृक्ष पल्लवित होता है उसे तमोगुणी पोषण नहीं चाहिए होता है सतोगुणी पोषण भारतवर्ष का वैशिष्ट्य है इसीलिए हमारी भूमि और हम स्वयं विशेष हैं
इसीलिए हमारा भी कर्तव्य हो जाता है कि हम स्वयं भी सद्गुण ग्रहण करें और समाज को उन्हीं सद्गुणों से पल्लवित करें
कभी हम भ्रमित थे
हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा
अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा
अब हमें सारे भ्रम दूर कर लेने चाहिए
अकबर के काल में भी समाज भ्रमित हो गया था मोहांध था तो तुलसीदास ने नर रूप में जन्म लेने वाले प्रभु राम द्वारा
स्थापित आदर्श को पकड़ा
और मानस के रूप में एक मार्गदर्शक ग्रंथ दे दिया जिससे समाज भगवान राम के आदर्शों पर चल सके
समस्याएं जितनी भी आएं जैसी भी आएं हम अपने कर्तव्य पथ से भटके नहीं मानस का यही संदेश है
आइए चलते हैं समाज में अपने को एक आदर्श रूप में स्थापित करने की प्रेरणा लेने के लिए उसी मानस के उत्तरकांड में
अंगद बचन बिनीत सुनि रघुपति करुना सींव।
प्रभु उठाइ उर लायउ सजल नयन राजीव॥18 क॥
निज उर माल बसन मनि बालितनय पहिराइ।
बिदा कीन्हि भगवान तब बहु प्रकार समुझाइ॥18 ख॥
भगवान् राम ने अंगद को उसके कर्तव्य याद दिला दिए
अब सूर्य से शिक्षाप्राप्त हनुमान जी जिन्हें भगवान् राम के रूप में इष्ट मिल गए हैं सूर्य के अवतार सुग्रीव से विनती कर अयोध्या में रुकना चाहते हैं
अंगद का कहना
कहेहु दंडवत प्रभु सैं तुम्हहि कहउँ कर जोरि।
बार बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि॥19 क॥
हनुमान जी ने जब भगवान् राम को बताया तो इनके आंसू आ गए
आचार्य जी ने यह भी बताया कि विकारों के कारण ही विचार महत्त्वपूर्ण होते हैं
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हमें स्थूल का ध्यान न कर सूक्ष्म का ध्यान करना है
मनुष्य का काम केवल सोना खाना नहीं है उसका तो कोई कर्तव्य है