राही वही जो राह से अपना नाता न तोड़े
प्रस्तुत है पर्युत्सुक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 12-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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591 वां सार -संक्षेप
1=प्रबल इच्छा रखने वाला
अपने विकारों को परिवार के विकारों को समाज के विकारों को पचाने वाले महात्मा तुलसीदास जी के महामन्त्र वाले अद्भुत ग्रंथ
रामचरित मानस की कथा का तत्वसार प्रेम का विस्तार है
वह प्रेम माला जपने वाला न होकर उचित स्थान पर पराक्रम का प्रकटीकरण करने वाला शौर्य है तभी रामराज्य बनता है
अपनी शक्ति को जाग्रत करने के लिए,
धर्म -पथ के , सेवा -पथ के ,वेद -पथ के,विद्या और अविद्याओं को जानने के जिज्ञासु राही बनने के लिए, कलियुग की वैतरणी को पार करने वाली नाव के यात्री बनने के लिए आइये चलते हैं ज्ञान भक्ति का भी विवेचन करने वाले उत्तर कांड में
अपने वक्ष की माला पहनाकर भगवान् राम ने अंगद को अत्यधिक प्रेमपूर्वक भेजा
भगवान् भी भक्त का ऋणी हो जाता है दोनों का अद्भुत संपर्क है भगवान् राम एक जगह हनुमान जी से कहते हैं कि मैं तुम्हारा ऋणी हूं
विभु आत्मा से अणु आत्मा की ओर संप्रेषित होने वाला संपर्क है ये
चरन नलिन उर धरि गृह आवा। प्रभु सुभाउ परिजनन्हि सुनावा॥
रघुपति चरित देखि पुरबासी। पुनि पुनि कहहिं धन्य सुखरासी॥3॥
फिर भगवान राम के चरणों को हृदय में बसाकर निषादराज ने घर आकर अपने कुटुम्बियों को भगवान् का स्वभाव वर्णित किया प्रभु का यह चरित्र देखकर अयोध्यावासी बार-बार दोहराते हैं कि सुख की राशि प्रभु धन्य हैं
साधना के बाद प्रभु राम को राज्याभिषेक के रूप में सिद्धि मिली है भगवान् अब सिद्धि बांट रहे हैं
आचार्य जी ने बताया कि पुरुषत्व क्या है वैर क्या है वैषम्य क्या है
विवाद समाप्त विषय समाप्त यही पुरुषत्व है
बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।
चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग॥20॥
इस दोहे की व्याख्या बहुत विस्तार ले सकती है
जब ब्राह्मण भ्रमित हो गए तो उससे बहुत हानि हुई
विकारी समाज ने पावनी अर्थात् गंगा मैली कर दी
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें