16.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 16-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सब कें गृह गृह होहिं पुराना। राम चरित पावन बिधि नाना॥

नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं॥4॥




प्रस्तुत है व्यंसक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 16-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  595 वां सार -संक्षेप

1 व्यंसक =ठग


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः इस मूल सिद्धान्त से हम लोग चिपके रहें

आचार्य जी प्रतिदिन हम लोगों का चैतन्य जाग्रत करने का प्रयास करते हैं

हमारी शक्ति बुद्धि विचार क्रिया चैतन्य हनुमान जी द्वारा प्रेरित हैं

इसी को इष्ट की साधना कहते हैं

हनुमान जी की भक्ति के लिए भाव समर्पण विश्वास अत्यन्त आवश्यक है

आचार्य जी ने भैया डा पंकज जी की जिज्ञासा शमित करते हुए बताया कि 

सृष्टि के आदि के कारण हैं नाद  विन्दु  बीज

निर्विकल्प समाधि में रहना वाला परमात्मा जब विकारी होता है तो ॐ स्वर निकलता है यह आदिस्वर नाद है


नाद विन्दु बीज से ही सृष्टि की सारी अभिव्यक्तियां होती हैं


आगम अर्थात् शास्त्र विधि विधान में मन्त्रों का प्रथम अक्षर बीजाक्षर कहलाता है


शिव प्रणीत तन्त्र शास्त्र तीन भागों में है

आगम यामल और मुख्य तन्त्र


वाराहीतंत्र' के अनुसार आगम निम्नांकित लक्षणों से प्रकट होता है : सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म(शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन और ध्यानयोग


आचार्य जी ने महानिर्वाण तन्त्र का उल्लेख करते हुए बताया कि कलियुग में सुधी लोग देवों की पूजा करेंगे निगम अर्थात् वेदों द्वारा वे सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते


अब चलते हैं रामचरित मानस की कथा में 


आत्मबोध की जागृति मानस का मूल तत्व है


कहा कहौं छवि आज की, भले बने हो नाथ ।

तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुष बान लो हाथ ।।

धनुष उठाना ही लोग भूल गए थे  अध्यात्म शौर्य से दूर हो गया था तो तुलसी जी ने हमारा आत्मबोध जगाने का प्रयास किया 

अब चलते हैं इसी मानस के उत्तर कांड में 


अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं। श्री रघुबीर चरन रति चहहीं॥

दुइ सुत सुंदर सीताँ जाए। लव कुस बेद पुरानन्ह गाए॥3॥

नगर के लोग दिन-रात ब्रह्मा जी को मनाते रहते हैं और उनसे प्रभु राम के चरणों में प्रीति चाहते हैं।

मां सीता  के लव और कुश नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए, जिनका वेद-पुराणों ने भी वर्णन किया है


मार्गदर्शक तुलसीदास जी ने भगवान् राम को विष्णु का अवतार न मानकर ब्रह्म का अवतार माना


तुलसीदास जी ने भगवान् राम का वही स्वरूप वर्णित किया जिससे उनपर कोई धब्बा  न लग सके

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि

गीता प्रेस का अवतार अंक अवश्य देंखे

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें