17.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 17-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 हमारा देश स्रष्टा की मनोरचना परम पावन, 

समूचे विश्व को लगती रही हरदम मनोभावन, 

हमारा धर्म संयम-शक्ति का अद्भुत समन्वय था, 

तभी हम थे जगत के मार्गदर्शक और शुभ 'आयन' ।


प्रस्तुत है अंसल ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 17-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  596 वां सार -संक्षेप

1 शक्तिशाली

प्रातःकाल जागरण एक सत्कर्म है जो हमें अद्भुत ऊर्जा से भर देता है यह हमारा आत्मकल्याण तो करता ही है हमें अन्य लोगों के बीच में उपयोगी सम्मानित व्यक्ति भी बना देता है 

ब्रह्मवेला का समय अत्यन्त अद्भुत होता है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए

हमारे मनोभाव कुछ करने के लिए प्रेरित करते हैं मानसिक शक्ति आत्मीयता संयम प्रेम साधना आदि भावों से भावित रहती है इसकी अभिव्यक्ति जिस रूप में भी हो जाए हमें उसका प्रयास करना चाहिए


अध्ययन स्वाध्याय जप मौनजप आदि से इस समय का सदुपयोग करें


सदाचारी के मन में सदाचार तो विकारी के मन में विकार आते हैं हमें विकारों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए और इसके लिए ये सदाचार वेलाएं अत्यन्त उपयुक्त हैं


आइये प्रवेश करते हैं रामचरित मानस में


बहुत सारा अध्ययन करके परिस्थितियों का आकलन करके तुलसीदास जी ने भगवान् राम के रूप में ऐसा चरित्र पाया जिसने सब प्रकार की परिस्थितियों को अनुभव करके सात्विक तात्विक वैचारिक सर्वसम्पन्न आनन्दमय वातावरण से परिपूर्ण रामराज्य को स्थापित किया


सुख इन्द्रियजन्य होता है और आनन्द मानसिक होता है मानसिक आनन्द में बहुत क्षमता होती है

क्रूर शासक अकबर से त्रस्त समाज को जाग्रत करने का तुलसी का यह प्रयास अद्भुत है

तुलसीदास जी को लगा अब भी हम यदि भगवान राम का रामत्व धारण कर लें तो रामराज्य स्थापित हो सकता है ऐसा रामराज्य जहां


सब कें गृह गृह होहिं पुराना। राम चरित पावन बिधि नाना॥


मोर हंस सारस पारावत। भवननि पर सोभा अति पावत॥

जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं। बहु बिधि कूजहिं नृत्य कराहीं॥3॥



दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥


अवधपुरी बासिन्ह कर सुख संपदा समाज।

सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज॥26॥


नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा॥

दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं॥1॥

नारद,सनक आदि मुनीश्वर सब मनुष्य के रूप में लीला करने आए भगवान् श्री रामजी के दर्शन के लिए प्रतिदिन अयोध्या आते हैं और उस नगरी को देखकर वैराग्य भुला देते हैं


बाज़ार रुचिर न बनइ बरनत बस्तु बिनु गथ पाइए।

बस्तु बिनु गथ की आचार्य जी ने बहुत सुन्दर व्याख्या की


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें