सर्वस्व सौंपता शीश झुका, लो शून्य राम लो राम लहर,
फिर लहर-लहर, सरयू-सरयू, लहरें-लहरें, लहरें- लहरें,
केवल तम ही तम, तम ही तम, जल, जल ही जल केवल,
हे राम-राम, हे राम-राम
हे राम-राम, हे राम-राम
भारत भूषण
प्रस्तुत है अकुतभय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 18-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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597 वां सार -संक्षेप
1 जिसे कहीं से भी डर न हो
हमारे साथ ही साथ कुछ भाव उत्पन्न हुए हैं अर्थात् सहज भाव जैसे आत्मीयता प्रेम ईर्ष्या द्वेष आदि
ये सदाचार संप्रेषण हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने स्वभाव में सद्भाव ग्रहण करें और बुरे भावों का परित्याग करें
तुलसीदास जी का वैशिष्ट्य देखिये निम्नांकित एक अर्धाली में प्रकृति का वर्णन दूसरी में स्वभाव का वर्णन
छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई॥
भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी॥3॥
पानी से भरी छोटी नदियाँ किनारों को तुड़ाती हुई चलीं, जिस प्रकार थोड़े धन से ही दुष्ट व्यक्ति इतरा जाते हैं और मर्यादा का त्याग कर देते हैं भूमि पर पड़ते ही पानी गंदला हो गया है, जैसे शुद्ध जीव माया से ग्रसित हो गया है
तुलसीदास जी का स्वान्तः सुखाय हम लोगों के आनन्द का विषय बन गया और मानस के रूप में हमें ऐसा मार्गदर्शक ग्रंथ मिला है जिसके अवगाहन में आनन्द ही आनन्द है
अंधेरे के समान परिस्थितियां मनुष्य को सदैव घेरे रहती हैं लेकिन आत्मप्रकाश से हमें इनसे निपटने का हौसला मिल जाता है और संगठन हो तो फिर कहना ही क्या
यह शतगुणित हो जाता है
रामचरित मानस ग्रंथ यही संदेश देता है
धर्म ज्ञान विज्ञान सुख संतोष की वृद्धि होती है षड्रिपु नष्ट होते हैं यह महत्त्व है रामकथा का
भगवान् राम की साकेत यात्रा का समय हो रहा है लेकिन जिसने जिसने राम की कथा सुनी है उनमें रामात्मकता का प्रवेश हो गया है और उसी रामात्मकता को उन्होंने प्रसारित किया
हम भी यही करें
तुलसी दास जी में तो अद्भुत कौशल था उन्होंने बार बार संकेत किया कि भगवान् राम मनुष्य के रूप में लीला तो करने आये हैं लेकिन हम उन्हें केवल मनुष्य न समझें वो तो साक्षात् भगवान् ही हैं ये समझें
आइये चलते हैं उत्तरकांड में
जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा॥
पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका॥1॥
जब से रामप्रताप रूपी अत्यंत प्रबल सूर्य उदित हुआ है तब से तीनों लोकों में
प्रकाश भर गया है। इस कारण बहुतों को सुख मिला और बहुत शोकग्रस्त हो गए
एक अद्भुत प्रसंग का तुलसीजी ने उल्लेख किया
जानि समय सनकादिक आए। तेज पुंज गुन सील सुहाए॥
ब्रह्मानंद सदा लयलीना। देखत बालक बहुकालीना॥2॥
ब्रह्मा की अयोनिज संतानें
सनक, सनन्दन, सनातन व सनत कुमार हैं पुराणों में उनकी विशेष महत्ता वर्णित है।
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें