कावयशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।।
प्रस्तुत है व्यंसक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी
संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ।
कहहिं संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ l
का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 19-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
बड़े भाग पाइब सतसंगा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा॥
https://sadachar.yugbharti.in/
598 वां सार -संक्षेप
1 व्यंसक =ठग
आज कल हम लोग रामकथा सुन रहे हैं
आइये प्रवेश करते हैं उत्तर कांड में
रूप धरें जनु चारिउ बेदा। समदरसी मुनि बिगत बिभेदा॥
आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं॥3॥
ऐसा लगता है चारों वेदों ने ही बालक रूप धारण किया हो चारों मुनि सनक सनन्दन सनत कुमार सनातन समदर्शी और भेदरहित हैं। वे दिगंबर हैं । उन सभी का एक ही व्यसन है - जहाँ रामकथा होती है वे वहाँ जाकर उसे अवश्य ही सुनते हैं
क्योंकि
रामकथा
रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥
भावक भावुक ज्ञानी चिन्तक मूढ़ सभी का कल्याण करती है
राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ॥1॥
यह रस संसार से संयुत रहने का एक आधार है जो रसहीन होते हैं उनकी न दिशा होती है न दृष्टि होती है
रसात्मक संसार में कोई न कोई व्यसन हो जाता है वह सद् व्यसन भी हो सकता है और दुर्व्यसन भी
तहाँ रहे सनकादि भवानी। जहँ घटसंभव मुनिबर ग्यानी॥
राम कथा मुनिबर बहु बरनी। ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी॥4॥
घटसंभव मुनि (घड़े से उत्पन्न हुए ) अर्थात् अगस्त्य ऋषि के यहां ये चारों राम की कथा सुनते हैं
आचार्य जी ने अरणि की व्याख्या की
हमारा जो रूप है उस भाव में रहने पर हम सम्मानित होंगे
भगवान् राम मनुष्य रूप में लीला कर रहे हैं तो उन मुनियों का स्वागत कर रहे हैं
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें