20.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 20-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ॐ

शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।



प्रस्तुत है व्यवसायिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 20-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  599 वां सार -संक्षेप

1 =धैर्यवान्


बड़े भाग पाइब सतसंगा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा॥4॥

हमें इस सत्संग का लाभ उठाना चाहिए ये सदाचार वेलाएं हमें आनन्दित करती हैं

हमारी सांसारिक समस्याओं को सुलझाने का उपाय बताती हैं अपनी रुचि के अनुसार हम गम्भीर विषयों में भी प्रवेश कर सकते हैं

उत्तरकांड में


रूप धरें जनु चारिउ बेदा। समदरसी मुनि बिगत बिभेदा॥

आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं॥3॥



ब्रह्मा के पुत्र सनक सनन्दन सनातन सनत कुमार निर्लिप्त होने के बाद भी रामकथा के व्यसनी हैं भगवान् राम के अन्य भाई,हनुमान जी आदि भी भक्ति में डूब रहे हैं 



संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ।

कहहिं संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ॥33॥



संत की संगति मोक्ष  का मार्ग है और कामी का साथ जन्म-मृत्यु के बंधन में लिप्त होने वाला  मार्ग है। संत, कवि,पंडित,वेद, पुराण  सभी सद्ग्रंथ ऐसा ही बताते हैं


इसके विस्तार के लिए विनय पत्रिका जिसमें मानस का सारतत्त्व है ऐसा कहा जा सकता है में हमें प्रवेश करना चाहिए




जिव जबते हरितें बिलगान्यो। तबतें देह गेह निज जान्यो ॥ 

मायाबस स्वरुप बिसरायो। तेहि भ्रमतें दारुन दुख पायो ॥ 

पायो जो दारुन दुसह दुख, सुख-लेस सपनेहुँ नहिं मिल्यो।

भव-सूल,सोक अनेक जेहि, तेहि पंथ तू हठि हठि चल्यो ॥ 

बहु जोनि जनम,जरा,बिपति, मतिमंद! हरि जान्यो नहीं।

श्रीराम बिनु बिश्राम मूढ़! बिचारु, लखि पायो कहीं ॥ 

             (२)

 आचार्य जी ने बताया 

उत्साह के साथ एक योजना बन रही है कि 29 व 30 मार्च को मानस का अखंड पाठ कार्यक्रम हो भगवान् की कृपा से ही सद् संगति का अवसर आता है 


रघुपति-भगति सुलभ,सुखकारी। सो त्रयताप-सोक-भय-हारी ॥ 

बिनु सतसंग भगति नहिं होई। ते तब मिलै द्रवै जब सोई l


इसके अतिरिक्त


मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर।

अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर॥130 क॥

उच्च स्वर में कौन गाते थे भैया मनीष भैया डा पङ्कज का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें