उद्देश्य भारत-भक्ति जग-व्यवहार प्रेमी का रहे ,
भाव मन का परम पावन कोइ भी कुछ भी कहे,
यह दशा हे इष्ट मेरे ! करो मेरी लालसा ,
उफ् नहीं निकले कभी तन कष्ट कितने भी सहे। ।
प्रस्तुत है साभ्यसूय -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 21-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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600 वां सार -संक्षेप
1साभ्यसूय =ईर्ष्यालु
हम सभी को सद्गति मिलनी है लेकिन
तन की गति के लिए हम लोग इतने चिन्तित रहते हैं तन से मन इतना संयुत रहता है कि हम तन को ही सत्य मान लेते हैं और इसे सत्य मानने से संसार प्रायः भयानक लगता है समस्याओं से आप्लावित लगता है कभी कभार ही मोहक लगता है
इसलिए यदि हमें आनन्दित रहना है तो हमें तन की गति के लिए चिन्तित नहीं रहना है
आजकल हम लोग रामचरित मानस,जिसमें छोटी छोटी बात भी बहुत महत्त्वपूर्ण है,से मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं ताकि हम भी संकट आने पर उनका हल निकाल सकें तुलसीदास ने स्वयं भी बहुत संकट झेले और उस कृति के नायक भगवान् राम ने भी अनगिनत संकटों को झेलकर अपना लक्ष्य
निसिचर हीन करउँ महि( भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥)
प्राप्त किया
मानस सामान्य कथा के साथ तत्व को प्राप्त करने वाली गहन कथा भी है
आइये चलते हैं उसी ग्रंथ के उत्तर कांड में
एकटक रहे निमेष न लावहिं। प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं॥2॥
तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा। स्रवत नयन जल पुलक सरीरा॥
कर गहि प्रभु मुनिबर बैठारे। परम मनोहर बचन उचारे॥3॥
संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ।
कहहिं संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ॥33॥
आचार्य जी ने नारदभक्तिसूत्र की चर्चा करते हुए बताया कि भक्ति से आत्मानन्द में मग्न कैसे हुआ जा सकता है
संत का संग ही मोक्ष का मार्ग है लेकिन है कठिन
और यदि हम ही संतत्व प्राप्त कर लें हम स्वयं ही अपने साथी हो जाएं तत्त्व सत्व की अनुभूति कर लें तो क्या कहना
हम अनन्त पथ के पथिक हैं
राम जनम के हेतु अनेका
हमारा चिन्तन यही है कि इतिहास दोहराया जाएगा
जय भगवंत अनंत अनामय। अनघ अनेक एक करुनामय॥1॥
भक्ति में भिखमंगापन नहीं होना चाहिए
आचार्य जी ने लेखनयोग का महत्त्व बताया मानस की बहुत सी व्याख्याएं हैं लेकिन
हम स्वयं भी अपनी व्याख्याएं निकाल सकते हैं