नववर्ष मंगलमय सुखद आनन्दमय विश्वासमय हो,
शौर्य शक्ति प्रपन्न वंचित वर्ग को शुभ आशमय हो ,
ज्ञान-गरिमा से प्रमंडित हो नयी पीढ़ी हमारी,
प्रकृति पुष्पित पल्लवित फलवती और सुवासमय हो।
प्रस्तुत है कृतागस् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 (प्रथम नवरात्र )
तदनुसार 22-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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601 वां सार -संक्षेप
1 कृतागस् =मुजरिम
भारतीय कालगणना पहले हम लोगों के व्यवहार में सहज रूप से रहती थी धीरे धीरे पाश्चात्य सभ्यता की परतें पड़ती गईं जिसके कारण हम भारतीय कालगणना आदि भूलते चले गए आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 को हम लोग संकल्प लें कि अपनी संस्कृति पर जमी धूल साफ करेंगे
नई पीढ़ी को ज्ञान -गरिमा से प्रमंडित करने का भी हम संकल्प लें उसे भारतीय संस्कृति की विशेषताओं से परिचित कराएं
हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा
अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा
आइये अपने सारे भ्रम समाप्त करने का संकल्प लेकर चलते हैं रामकथा के उत्तरकांड में
बार-बार अस्तुति करि प्रेम सहित सिरु नाइ।
ब्रह्म भवन सनकादि गे अति अभीष्ट बर पाइ॥35॥
प्रेम के साथ बार-बार स्तुति करके, सिर नवाकर और अपना अभीष्ट वर ( अर्थात् अणु आत्मा को यह हमेशा अनुभव होता रहे कि वह विभु आत्मा का ही अंश है उसे अपनी असीमित शक्ति हमेशा अनुभव होती रहे) पाकर अपरिवर्तनीय रूप वाले सनक सनन्दन सनातन सनत कुमार मुनि ब्रह्मभवन को चले गए
संसार में आने पर माया लिपट जाती है शरीर धारण किया है तो विकार तो होंगे ही
विचार अस्त व्यस्त होंगे इसलिए हमारा विकार मुक्त शरीर हो इसके लिए हमें संकल्पित होना चाहिए इसी दिव्यत्व की प्राप्ति की हमारी कामना होनी चाहिए
पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं। चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं॥1॥
जोरि पानि कह तब हनुमंता। सुनहु दीनदयाल भगवंता॥
नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं। प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं॥3॥
भरत जी ही का नाम आया क्योंकि वो बहुत दिन से वियोग की साधना कर रहे हैं
आचार्य जी ने संत का वास्तविक अर्थ बताया
संत सारे विकारों को समाप्त करता है
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