25.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥

उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥


प्रस्तुत है आर्षेय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 25-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  604वां सार -संक्षेप

1 =आदरणीय



अपनी संचेतना/प्राणिक ऊर्जा को जाग्रत करने के लिए हमें अध्ययन और स्वाध्याय की आवश्यकता होती है ये सदाचार संप्रेषण हमें विचारोन्मुख चिन्तनोन्मुख अध्ययनोन्मुख स्वाध्यायोन्मुख विकासोन्मुख कर देते हैं   आचार्य जी द्वारा यह  वपन   का कार्य (बीज बोना )सुचारु रूप से चल रहा है यह कार्य हमारे चिन्तन को राष्ट्रोन्मुखी भी बनाता है भारत का चिन्तन सनातन चिन्तन है इसी चिन्तन में पृथ्वी का कल्याण छिपा है 

संत इसी कार्य में लगे रहते हैं 

जो निरक्षर हैं

मसि-कागद छूयो नहीं, कलम गही नहिं हाथ॥

 वे  अपने काम में दत्तचित्त होकर आनन्दानुभूति कर सकते हैं

दत्तचित्तता कठिन है अद्भुत है लेकिन मनुष्य के लिए प्राप्य है

आचार्य जी ने अद्भुत ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति के लिए परस्पर का सहयोगी भाव आवश्यक बताया 


सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्‌। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम्‌। ता महासंहिता इत्याचक्षते।

अध्यात्म बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है

तीनों तापों की शान्ति  ही संतत्व है


आरामदायक स्थिति (comfort zone )से बाहर निकलकर हम लोग  कार्यक्रमों में भाग लें एक ऐसा ही कार्यक्रम 29 व 30 मार्च को अपने गांव सरौंहां में हो रहा है ऐसे कार्यक्रमों से हमें कुछ न कुछ अवश्य मिलता है


परिवर्तनमय संसार में हमें अपने को परिवर्तनों के अनुकूल ढाल लेना चाहिए हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए संसार में सर्वत्र भय है

संत अकुतोभय होता है

अभयं सत्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।


दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।16.1।।

उत्तर कांड में 

प्रभु राम अपने भाइयों को बता रहे हैं

बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दु:ख दुख सुख सुख देखे पर॥

सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी॥1॥

संत भक्तियोगी कर्मयोगी या ज्ञानयोगी होते हैं


यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।


शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।12.17।।


भगवान् राम  गुरु पिता मां के प्रति अत्यधिक समर्पित रहे उनके आदेशों को सिर माथे पर लिया यह भक्तियोगी संत की परिभाषा है


बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन॥

सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री॥3॥



ये ज्ञानयोगी संत की परिभाषा है


कोई कामना नहीं । वे मेरे नाम का परायण करने वाले होते है। उनमें शांति, वैराग्य, विनय और प्रसन्नता निवास करती है । उनमें शीलता, सरलता होती है वे सबके प्रति मित्रता का भाव रखते हैं और ब्राह्मण के चरणों में भी उनकी प्रीति होती है


सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं॥4॥


निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज।


ये कर्मयोगी संत के लक्षण हैं विवेकानन्द डा हेडगेवार उदाहरण हैं अपने कर्म में लगा रहना लक्ष्य के प्रति समर्पण


तुलसीदास जी द्वारा संत के इस तरह के वर्णन के पीछे सीधी बात यह है कि उस समय का हिन्दू समाज जो अपने को पददलित होने का अनुभव कर रहा था उसमें संतत्व जाग्रत हो संतत्व वीर भाव से अलग नहीं होता तभी उन्होंने भगवान् राम से कहलवाया


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


संतत्व और शिवत्व को आचार्य जी ने और कैसे विश्लेषित किया जानने के लिए सुनें