बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥14 घ॥
(बाल कांड से एक सोरठा )
प्रस्तुत है सुप्रतिष्णात ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 26-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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605 वां सार -संक्षेप
1 =किसी विषय का अच्छा जानकार
कर्ममय जीवन जगत का मूल है अकर्मण्यता दोष है
असामान्य आचार्य आo श्री ओम शंकर जी हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से प्रेरित करते हैं कि हम लोग कर्ममय जीवन अपनाएं
किसी भी कार्यक्रम के लिए हमारा उत्साह बना रहना चाहिए 29 व 30 को सरौंहां में हम लोगों ने एक कार्यक्रम करने का संकल्प किया है और 31 को चित्रकूट जाने की योजना बनाई है ये संकल्प टूटने नहीं चाहिए
इसी कर्ममय जीवन की प्रेरणा देने वाली संतोष सहारा देने वाली सचेत जीवित जाग्रत संगठित होने का उत्साह देने वाली रामकथा
निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी
में आइये प्रवेश करते हैं
मैली चादर ओढ़कर श्री राम की कलि कलुष बिभंजनि गूढ़ कथा हम समझ ही नहीं सकते हमें तो अपने विचार विमल करने ही होंगे
कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड।
दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड॥
रामचरितमानस में चार वक्ता और चार श्रोता है:
कागभुसुंडी ने गरुड़ जी को रामकथा सुनाई,शिवजी ने पार्वती जी को,याज्ञवल्क्य जी ने भारद्वाज जी को और
तुलसीदास जी,जो नाभादास के अनुसार कलिकाल के वाल्मीकि थे
इतिहासकार स्मिथ के अनुसार ‘मुगलकाल के सबसे बड़े व्यक्ति’ थे
ने संतों के समूह को रामकथा सुनाई
राम कथा ऐसे समय में लिखी गई जब दुष्ट अकबर का शासन था और इस कथा ने बुझती ज्योति को जलाने का काम किया इस तरह के संतों की परम्परा ने भारतीय जीवन दर्शन को प्राणिक ऊर्जा प्रदान की भारतीय शैली को सुरक्षित रखा शौर्य शक्ति को परिमार्जित किया यह संतत्व है
संवत् सोलह सौ इकतीसा। करौं कथा हरिपद धरि सीसा।।
नौमी भौम वार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।”
मानस की रचना संवत 1631 ई० में चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि, मंगलवार को पूर्ण हुई थी।
उत्तर कांड में
संत असंत भेद बिलगाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई॥
संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता॥3॥
वैश्विक कल्याण की चाह रखने वालले भरत जी पूछ रहे हैं संत के साथ असंत के लक्षण भी बता दीजिये
सुनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ॥
तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कपिलहि घालइ हरहाई॥1॥
दुष्टों से हमें सचेत रहना चाहिए
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया भैया हरीन्द्र त्रिपाठी जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें