27.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 संत - संतापहर, विश्व - विश्रामकर, राम कामारि, अभिरामकारी ।


शुद्ध बोधायतन, सच्चिदानंदघन, सज्जनानंद - वर्धन, खरारी ॥१॥


शील - समता - भवन , विषमता - मति - शमन, राम, रामारमन, रावनारी ।


खङ्ग, कर चर्मवर, वर्मधर, रुचिर कटि तूण, शर - शक्ति - सारंगधारी ॥२॥




सिद्ध - कवि - कोविदानंद - दायक पदद्वंद्व मंदात्ममनुजैर्दुरापं ।


यत्र संभूत अतिपूत जल सुरसरी दर्शनादेव अपहरति पापं ॥८॥


नित्य निर्मुक्त, संयुक्तगुण, निर्गुणानंद, भगवंत, न्यामक, नियंता ।


विश्व - पोषण - भरण, विश्व - कारण - करण, शरण तुलसीदास त्रास - हंता ॥९॥



प्रस्तुत है आसक्तचित्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 27-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  606 वां सार -संक्षेप

1 =एकाग्र


हम अपने संतों ज्ञानियों विचारकों  दर्शनवेत्ताओं  के सुझाए गए मार्ग पर चलकर उनके सद्गुणों से प्रेरणा पाकर अपनी प्राणिक ऊर्जा को जाग्रत करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि हम सांसारिक समस्याओं के आने पर भय और भ्रम मुक्त होकर उन्हें आसानी से सुलझा सकें,

आनन्द की अनुभूति कर कर्ममय जीवन अपना सकें 


हमारी संस्कृति में परिष्करण एक विशेषता है 

एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी की पुनि आध ,


तुलसी संगत साधु  की ,काटे कोटि अपराध।


सद्संगति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ऐसी ही सद्संगति का सुअवसर हमें 29 व 30 मार्च,1अप्रैल को मिल रहा है


हमें विकारमय संतत्व का बोध है जिसके अनुसार संत का अर्थ है विरक्त रूप से रहने वाला जिसे संसार से कोई मतलब न हो जब कि ऐसा है नहीं

आचार्य जी हमें इन दिनों यही बता रहे हैं कि

संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥

निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर सुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥4॥


पर दुःख में द्रवित होना संतत्व है दीनों व्याकुल लोगों का ताप हरने वाला संत है 

संतत्व संस्कारों से आता है जन्म से आता है आचार्य जी ने इसके लिए गुरु तेगबहादुर

 शिवा जी का उदाहरण दिया


भोगी अपना ही सोचते हैं भोगी कब्जा करने की कोशिश करते हैं संत इन्हीं को पराभूत करते हैं

हमें भ्रमित नहीं होना है हमें अपने संतत्व की परीक्षा देनी है आत्मकल्याण में भी हम प्रवृत्त हों 

आज भी संतों का भोगियों और ढोंगियों से संघर्ष चल रहा है


काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥38॥



सुनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ॥

तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कपिलहि घालइ हरहाई॥1॥


जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई॥2॥


इनसे सचेत रहें दुष्ट का प्रचार उसका हौसला ही    बढ़ाता है इनकी चर्चा विकार है हम इस ओर भी ध्यान दें


दुष्ट


काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन॥

होते हैं

वे दूसरों से द्रोह करते हैं  पराई स्त्री, पराए धन, पराई निंदा में आसक्त रहने वाले ये पापी नर का शरीर धारण किए  राक्षस हैं


वैलंटाइन डे आदि के रूप में आए विकारों को हमने व्यवहार में प्रदर्शित करना प्रारम्भ कर दिया यह भी असंतत्व है इसका शुद्धिकरण भी आवश्यक है

मन्दिरों का निर्माण समर्पित भाव से किया जाता था


नवजागरण काल की एक महान नारी रानी रासमणि  दक्षिणेश्वर काली मंदिर की संस्थापिका थीं वह नवजागरण काल के प्रसिद्ध दार्शनिक स्वामी रामकृष्ण परमहंस की मुख्य   पृष्ठपोषिका भी थीं


स्वाध्याय का एक अर्थ यह भी है कि हम अपना भी अध्ययन करें

इसके अतिरिक्त भैया विवेक भागवत जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें