प्रस्तुत है लब्धकाम आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 20-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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630 वां सार -संक्षेप
नियमित रूप से एक लम्बी अवधि से श्री रामचरित मानस का आधार लेकर सदाचारमय विचारों का संप्रेषण हो रहा है हमारा कर्तव्य है कि उन विचारों को हम अभ्यास में लाएं क्योंकि हम संसार में रहते हुए संसार के सत्य को जानना चाहते हैं
उस जानने का आधार कर्म उपासना ज्ञान है कर्म उपासना ज्ञान एक दूसरे से संयुक्त भी हैं जानना एक भाव है शंकाओं के निवारण हेतु शिक्षक द्वारा शिक्षार्थी
को शिक्षित करना अनन्त काल से चल रहा है
हम भारतवर्ष के लोग भाव विचार क्रिया पर आधारित एक ऐसी मानसिक सृष्टि का निर्माण करते हैं जिससे अपना और अपनों का जीवन संवार सकें हिमालय से कन्याकुमारी तक एक सांस्कृतिक सूत्र में संयुत
भारतवर्ष की बाह्य प्रकृति भी सुरम्य है और अन्तः प्रकृति भी
ज्ञान वैराग्य भक्ति के दर्शन कराने वाले उत्तरकांड में आइये प्रवेश करते हैं
शिव जी सती के वियोग में जब विरक्त भाव से घूम रहे थे तो उन्हें एक अनुरक्ति का स्थल मिल गया
सीतल अमल मधुर जल जलज बिपुल बहुरंग।
कूजत कल रव हंस गन गुंजत मंजुल भृंग॥56॥
इस स्थान पर दैहिक दैविक भौतिक कष्ट दिख ही नहीं रहे थे
आचार्य जी ने मानस तीर्थ आदि का उल्लेख किया और तीर्थ का शाब्दिक अर्थ बताया
नदी के तट पर जो घाट होता है उसे तीर्थ कहते हैं नदियां पवित्र स्थल मानी गईं हैं इन्हीं के तटों पर वैदिक ज्ञान की अनुभूति और अभिव्यक्ति हुई है
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः । अनेन वेद्यं सच्छास्त्रमिति वेदान्तडिण्डिमः ॥
कथा सुनने के बाद उसे गुनना महत्त्वपूर्ण है आचार्य जी ने शिव जी द्वारा मराल वेश धारण करने का रहस्य भी स्पष्ट किया
सुनहिं सकल मति बिमल मराला। बसहिं निरंतर जे तेहिं ताला॥
आचार्य जी ने
चौदह तमिल शैव सिद्धान्त ग्रंथों का उल्लेख क्यों किया
कबड्डी में मरने जीने का दार्शनिक पक्ष क्या है
उत्तरकांड में आगे क्या बताया जानने के लिए सुनें