प्रतिष्ठित देश का हर नागरिक सम्मान पाता है,
वहाँ वातावरण आनन्दमय हो गीत गाता है,
जवानी के सबल भुजदण्ड पौरुष से भरे रहते,
छिछोरे स्वार्थ लोलुप भ्रष्ट भीतर से डरे रहते।
प्रस्तुत है तारल -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी/चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 04-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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614 वां सार -संक्षेप
1तारलः =विषयी
एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥1॥
चाहे श्रीमद्भगवद्गीता हो चाहे लक्ष्मण, मंदोदरी, राम -गीता
ये सारी गीताएं सुख दुःख लाभ हानि उत्थान पतन आनन्द विषाद के समन्वित स्वरूप वाले मानव जीवन को सही रूप से जीने की शैली का ज्ञान देती हैं
आजकल हम लोग उत्तर कांड के रामगीता अंश में प्रविष्ट हैं जिसमें मनुष्य की लीला करने वाले भगवान् राम हमें समझा रहे हैं और इसकी अनुभूति कर वाल्मीकि, तुलसीदास से लेकर आज के कथावाचक भी अपने विचार प्रस्तुत कर रहे हैं और यह तो है ज्ञान -गरिमा, मानवता,मोक्ष के मार्ग का
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा l
परिवर्तनशील सांसारिक जीवन में ही रहने की कामना करने वाली महादेवी वर्मा कहती हैं कि जहां परिवर्तन होता ही नहीं ऐसे स्वर्ग में
वे मुस्काते फूल,नहीं
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना
उनको रहने की कामना नहीं है
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥
हमें कोई व्यथा विषाद चिन्ता न हो तो यही मोक्ष है और हम जिस लोक अर्थात् स्थान पर हैं उसे ही संवारें जिस पद पर हों उसके साथ न्याय करें
सहज जीवन मनुष्यत्व है
गम्भीर विषयों में व्यावहारिक अर्थ लें
हमारा मनुष्यत्व कर्मशीलता जाग्रत रहनी चाहिए हमें अपने ग्रंथों से कथाओं से प्रेरणा मिलती है
हमें स्वयं भी एक नई कथा की रचना करनी चाहिए यही जीवन है
आचार्य जी ने पारसमणि और गुंजा का उदाहरण देते हुए बताया कि हमारी नासमझी कैसी बनी रहती है
हमें अपना विवेक जाग्रत रखना चाहिए
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें