प्रस्तुत है पुण्यनिवह ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी /पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 05-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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615वां सार -संक्षेप
1 गुणी
रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥
इस अद्भुत कथा के रचयिता तुलसीदास जी ने
रुक्मिणी मंगल, छप्पय नीति,कवित्त संग्रह के रचयिता पखरौली में जन्मे रामानन्द के एक शिष्य गुरु नरहरिदास से पूछकर
अपार संसार समुद्र मध्ये
निमज्जतो मे शरणं किमस्ति ।
गुरो कृपालो कृपया वदैत-
द्विश्वेश पादाम्बुज दीर्घ नौका ॥ १॥
फिर सद्बुद्धि प्राप्त की और नरहरिदास ने उन्हें शेष सनातन की पाठशाला में भेजा जहां उन्होंने सनातन साहित्य आदि का अध्ययन किया
कथा में विचार ज्ञान व्यवहार आदर्श का प्रवेश तुलसीदास जी का अद्भुत कौशल है
इस ग्रंथ ने मुगलों के आततायी शासन में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हिन्दुओं में नये विश्वास और नई ऊर्जा का संचार किया था
एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥1॥
फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा॥
कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही॥3॥
माया से प्रेरित काल, कर्म, स्वभाव, गुण से आवृत यह सदा भटकता रहता है। बिना ही कारण स्नेह करने वाले ईश्वर कभी विरले ही दया करके इसे मनुष्य का शरीर देते हैं
मनुष्य परमात्मा का प्रतिनिधि है भगवान् राम समझा रहे हैं
यह मनुष्य का शरीर भवसागर के लिए बेड़ा है।
यह शरीर उपाय प्रधान है
मनुष्य विलक्षण है वह प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल बनाने का उपाय रचता है
विश्व के मालिक परमात्मा के चरण गति मति के प्रतीक हैं
गतिमान जीवन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है
संसार की समस्याओं से निजात पाना ही धारा के पार जाना है
समस्याएं अकबर के काल में थीं तो मानस की रचना हो गई समस्याएं अब भी हैं तो उसी मानस के सहारे की अब भी जरूरत है
आचार्य जी ने अखंड पाठ का अर्थ बताया
आत्मदीप्ति आवश्यक है हम भी रचयिता बन सकते हैं
आचार्य जी ने पत्रकार प्रदीप सिंह की क्या चर्चा की आदि जानने के लिए सुनें