समय नहीं विचार का समय नहीं सुधार का,
सभी पिशाच एक हैं न कोई किंच नेक है।
प्रस्तुत है यातुधान -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
माधवमास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 07-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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617 वां सार -संक्षेप
1 यातुधानः = राक्षस
जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन हृदयँ दृढ़ गहहू॥
सुलभ सुखद मारग यह भाई। भगति मोरि पुरान श्रुति गाई॥1॥
प्रभावकारी वाणी द्वारा आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम संसार की समस्याओं से जूझते हुए उस उन्नत भाव की ओर अग्रसर रहें जिसके लिए मनुष्य प्रयत्नशील रहता है विशेष रूप से भारतवर्ष में रहने वाला मनुष्य जो संवेदनशील है स्वाध्यायी है और जो सद्संगति संयम साधना की ओर रुझान रखने वाला हो
जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ।
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ॥44॥
राक्षस अपनी तैयारी में लगे रहते हैं
अद्भुत सृष्टि में परमाणु
से लेकर ब्रह्माण्ड तक सब चलायमान है सर्वत्र ब्रह्म है
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥4॥
हम अंशी के अंश हैं यह अनुभूति बहुत महत्त्वपूर्ण है
आचार्य जी ने शाश्वत स्थान का अर्थ भी स्पष्ट किया
उत्तरकांड में
ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका॥
करत कष्ट बहु पावइ कोऊ। भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ॥2॥
दुर्गम ज्ञान की प्राप्ति में अनेक विघ्न हैं। उसका साधन भी कठिन है
मन के लिए उसमें कोई आधार नहीं है।
बहुत कष्टों द्वारा कोई उसे प्राप्त भी कर लेता है, तो वह भी बिना भक्ति मुझको प्रिय नहीं लगता
भक्ति अद्भुत है
भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी। बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी॥
भगवान् राम शिक्षक के रूप में हैं
शिक्षक एक विशेष भूमिका के साथ अवतरित होता है आचार्य जी ने एक अलंकार के कारण भाई बहन के बीच हुई बहस वाला प्रसंग भी बताया
रामकृष्ण परमहंस (विवेकानन्द नहीं -आचार्य जी ने फोन करके मुझे बताया )अपने शिष्यों को जो आपस में बहस कर रहे थे पूछते हैं
क्या विश्वास की भी आंखें होती हैं?
समझाते हुए कहते हैं
विश्वास तो अंधा होता है इसी का नाम भक्ति है
भक्ति निष्क्रियता नहीं है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें