आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥
प्रस्तुत है लब्धान्तर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 08-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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618 वां सार -संक्षेप
मन की उद्विग्नता से तन में भी तमाम विकार हो जाते हैं इसलिए हमें अपने मन को उद्विग्न होने से बचाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए अच्छे विचारों को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम जीवन में आ रहे संकटों का आसानी से सामना कर सकें
हम जैसे जैसे बड़े होते हैं हमारे भाव बदलने लगते हैं विचारों में परिष्करण के भाव का समावेश होने लगता है
आत्मस्थता की अनुभूति से हम अपने जीवन को मूल्यवान बना लेते हैं
आत्मस्थता से ब्राह्मणत्व उत्पन्न होता है
हम अंशी के अंश हैं यह चिन्तन कठिन है लेकिन लोग इसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं
किसी विषय को समझाने से पहले हम उसे ठीक से समझ लें
आचार्य जी ने अध्ययन, स्वाध्याय, भक्ति के प्रथम सोपान, ब्राह्मण, ब्राह्मण के चार कर्तव्य,सद्संगति, राष्ट्र -सेवा आदि का अर्थ स्पष्ट किया
फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा॥
कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही॥3॥
सृष्टि का क्रम है कि परमात्मा भी मायामय होता है मनुष्य के रूप में विरला जीवन हमें मिला है इसकी अनुभूति और अभ्यास होना चाहिए
नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥
करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा॥4॥
यह मनुष्य का शरीर भवसागर पार करने के लिए बेड़ा है। मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है। गुरु इस जहाज को खेने वाले हैं। इस तरह दुर्लभ साधन सुलभ होकर उसे प्राप्त हो गया है
पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता। सतसंगति संसृति कर अंता॥3॥
सद्संगति से बहुत सारी भ्रांतियां हम दूर कर सकते हैं बहुत से प्रश्नों के उत्तर हमें मिलने लगते हैं आपस में चर्चा करें तो अज्ञानता के पर्दे छटेंगे यज्ञ दान तप कभी न त्यागें
मानस की एक एक चौपाई लम्बे चिन्तन मनन का विषय हो सकती है
हमारा पतन न हो इसके लिए नित्य चिन्तन मनन आवश्यक है ये संप्रेषण हमें पतित होने से बचाते हैं
आचार्य जी ने और क्या बताया जानने के लिए सुनें