9.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 09-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 "मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की"

जो सुनहि मन मन गुनहि गावहि रुचि करहि शुभ साथ की, 

होवहि परम कल्यान ताकर कृपा श्री रघुनाथ की ।



प्रस्तुत है   सङ्कसुकारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 09-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  619 वां सार -संक्षेप



सदाचारमय विचारों का कथन वाचन चिन्तन मनन श्रवण निदिध्यासन अद्भुत है लाभकारी है संश्लेष्मणात्मक सोच वाले हम इन्हें व्यवहार में भी उतारने का प्रयास करें


यावत्स्वस्थमिदं कलेवरगृहं यावच्च दूरे जरा ।

यावच्चेंद्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुषः ।

आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान् ।

सन्दीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः ॥



घर जलने पर कुआं खोदने से क्या फायदा इसलिए जब हमारा शरीर स्वस्थ है आयु क्षीण नहीं है  हम विभ्रमा से दूर हैं तब ही हम आत्मकल्याण के लिए   बड़े से बड़े प्रयत्न कर लें


मनुष्य शरीर शुभ फलों का प्राप्तिकर्ता है लेकिन यदि हम इसे पाकर भी अशुभ फलों को पाने का प्रयास करें तो हम अपना बहुत नुकसान कर रहे हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए


हल्के कामों के चक्कर में हमारा चिन्तन गहन नहीं हो पाता और शरीर हमें मनुष्य का मिला है

इस ओर हम ध्यान दें

प्रतिदिन समीक्षा करें कि आज हमने समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी रुझान वाला कौन सा काम किया


भारतवर्ष ही ऐसी धरती हैं जहां प्रलय और सृजन दोनों अनुभव किए जा सकते हैं


अनगिनत भोगभूमियों के बीच तपोभूमि भारतवर्ष ही ऐसी धरती हैं जहां प्रलय और सृजन दोनों अनुभव किए जा सकते हैं


उत्तरकांड में  रामगीता के अंश देखिए 


ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका॥


ज्ञान अगम  है और उसकी प्राप्ति में अनेक विघ्न हैं। उसका साधन कठिन है और उसमें मन के लिए कोई आधार नहीं है।


तुलसीदास जी ने  कथा में पिरोकर सामान्य जीवन को प्रभावित करने वाला सरल भक्ति पथ हमें बता दिया है


भगवान् राम जनमानस को समझा रहे हैं

पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा॥

सानुकूल तेहि पर मुनि देवा। जो तजि कपटु करइ द्विज सेवा॥4॥


आचार्य जी ने तात्विक द्विज और तथाकथित द्विज में अन्तर बताया


द्विज अर्थात् दूसरा जन्म जिनका होता है अर्थात् ज्ञान का जन्म

ऐसे द्विजों का चिन्तन भावबोध विलक्षण हो जाता है

संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि॥45॥

उस समय वैष्णवों और शैवों का संघर्ष चल रहा था उनमें एकता स्थापित करने के लिए    तुलसी ने यह अद्भुत बात कही

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें