10.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा॥

अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी॥3॥



प्रस्तुत है  मितवाच् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 10-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  620 वां सार -संक्षेप

कल के शब्द सङ्कसुक का अर्थ दुष्ट


रामचरित मानस के अंशों  आदि  महत्त्वपूर्ण सदाचारमय विचारों को उद्धृत करने के पीछे आचार्य जी का यही उद्देश्य रहता है कि हम जाग्रत हों भारत राष्ट्र, गो गीता गंगा गायत्री वाला ऐसा देश जहां देवता भी आने के लिए व्यग्र रहते हों,के प्रति और समाज के प्रति संवेदनशील अनुरक्त बनें चिन्तन मनन ध्यान निदिध्यासन अध्ययन लेखन स्वाध्याय में रत हों खानपान सही रखें मैं कौन हूं मेरा कर्तव्य क्या है मेरा प्राप्तव्य क्या है ये तीन जिज्ञासाएं  हों

अपना जीवन भावापन्न सचेत सक्रिय सतर्क  सोद्देश्य बना सकें व्याकुलता व्यग्रता निराशा हताशा उदासी त्याग सकें 


आचार्य जी ने 23 अगस्त 2015 रविवार को  दिल्ली प्रवास के दौरान आचार्य जी द्वारा ही लिखे गए संघटक के गुणों को आज पुनः दोहराया 

संघटक जिज्ञासु, स्वाध्यायी, विवेकशील, कर्मानुरागी, विश्वासी, आत्मगोपी, सहज अप्रतिम प्रेमी होना चाहिए


ऐसे चार संघटक चार हजार के बराबर हैं 


उत्तरकांड के अंश रामगीता में 

आइये प्रवेश करें 

औरउ एक गुपुत मत सबहि कहउँ कर जोरि।

संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि॥45॥


और एक गुप्त मत भी है, मैं उसे सबसे हाथ जोड़कर कहना चाहता हूँ कि उपदेष्टा शंकर जी के भजन बिना व्यक्ति मेरी भक्ति नहीं  प्राप्त कर पाता

वेदतन्त्र में शिव जी की उपासना प्रधान है

भगवान् राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए शिव की उपासना की है रावण भी शिव उपासक था

रावण की उपासना तमोगुणी और भगवान् राम की उपासना सतोगुणी है



तमोगुण आतंक का पर्याय है

सतोगुण निर्मिति का सोपान है

राम रावण संघर्ष संसार का मूल स्वरूप और स्वभाव है यह लगातार चलता रहता है


कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा।

सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई॥1॥

इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य जी बताते हैं कि 

रामसुखदास जी अपने जीवन से चाहिए शब्द ही निकाल देना चाहते थे


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें