प्रस्तुत है अत्याहारयमाण -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
वैशाख कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 11-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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621 वां सार -संक्षेप
इन सदाचार वेलाओं से सदाचारमय विचार ग्रहण कर हम लोग ब्रह्मवर्चस् की प्राप्ति का प्रयास कर रहे हैं व्याकुलता दूर करने का प्रयास कर रहे हैं
भौतिक,आध्यात्मिक, भावनात्मक, विचारात्मक, क्रियात्मक प्रयास मनुष्य का सहज भाव है
संसार के स्रष्टा और संसार के बीच के सेतु मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति और अनुभूति के बाद उसकी अभिव्यक्ति अद्भुत है अभिव्यक्ति के प्रभाव का प्रदर्शन रहित दर्शन कठिन है लेकिन असंभव नहीं परमात्मा की कृपा से सामान्य जीव भी इस कठिन काम को कर लेते हैं
तुलसीदास के कर्म से उपजी कृति भावाभिव्यक्ति उनके कर्मसिद्धान्त व्यवहार की प्रस्तुति मानस के उत्तरकांड में
भगवान् राम समझा रहे हैं
अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी॥3॥
जो कोई भी आरंभ अर्थात् फल की चाह रखते हुए कर्म करना नहीं करता, जिसका कोई अपना घर नहीं है अर्थात् घर के प्रति ममता नहीं है जो मानहीन है , पापहीन है और क्रोधहीन है, जो भक्ति करने में दक्ष और विज्ञानवान् है
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।
सत्संग में जिसकी रुचि है, जिसके मन में सब विषय तिनके के समान हैं, जो भक्ति के पक्ष में हठी है, किन्तु दूसरे के मत का खण्डन नहीं करता तथा जिसने सब कुतर्कों को दूर कर दिया है वह मुझे प्रिय है
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें