12.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है   लब्धावकाश आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 12-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  622 वां सार -संक्षेप



सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्‌। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम्‌। ता महासंहिता इत्याचक्षते।

अथाधिलोकम्‌। पृथिवी पूर्वरूपम्‌। द्यौरुत्तररूपम्। आकाशः सन्धिः। वायुः सन्धानम्‌। इत्यधिलोकम्।



हम दोनों  प्रेम, जिसका आधार भारत मां है,से आवृत आचार्य एवं शिष्य एक साथ यश  प्राप्त करें, एक साथ  ब्रह्मवर्चस् प्राप्त करें। इसके पश्चात् हम संहिता के गहन अर्थ की व्याख्या करेंगे जिसके पाँच प्रमुख अधिकरण हैं....उपनिषद् का यह छंद बहुत महत्त्वपूर्ण है

हमें इन सबकी जानकारी रखनी चाहिए  इसके लिए हमें संस्कृत भाषा की जानकारी भी होनी चाहिए वास्तविक शिक्षा यही है मनुष्यत्व का ज्ञान  यशस्विता की अनुभूति  पुरुषार्थ के प्रति उत्साह  अधोगामी दिशा से विमुखता सही विद्या से ही संभव है शिक्षा कमाने के लिए नहीं होनी चाहिए अशिक्षित भी धनार्जन कर लेता है



तुलसीदास जी का ज्ञान विद्वत्ता उनके संस्कृत छंदों में पता चलती है लेकिन अवधी बोली का आधार लेकर उन्होंने कल्याणकारी रामचरित मानस के रूप में एक अद्भुत बेमिसाल ग्रंथ हमें दे दिया जिसकी घर घर में पहुंच है एक ओर मानस में बीच बीच में आए संस्कृत छंदों से उनकी विद्वत्ता परिलक्षित होती है तो दूसरी ओर दोहे चौपाइयां भी अत्यधिक तात्विक हैं और उनकी रचना किसी विद्वान/विदुषी से ही संभव है 


अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करना और संस्कृत से अनभिज्ञता यह दिखाती है कि गुलामी की तौंक अभी भी हम गले में डाले हैं

दुष्ट और शिष्ट का संघर्ष दिखाती राम की कथा गुलामी से मुक्ति की कथा है

यह गुलामी की तौंक गले से निकालने की प्रेरणा देती है


रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥


 कथा मन्दाकिनी तब होगी जब हमारा चित्त भी चित्रकूट जैसा पवित्र होगा हम अपने शरीर, परिवार, समाज के लिए तो समय निकालें ही लेकिन आत्मिक विकास के लिए समय निकालना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है


आइये  अंश रूप में रामत्व का अपने अंदर प्रवेश कराने के लिए रावणत्व से निपटने के लिए प्रवेश करते हैं  उत्तरकांड में

जननि जनक गुर बंधु हमारे। कृपा निधान प्रान ते प्यारे॥1॥

भगवान् राम की शरण में जो जाता है उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं  

भगवान् राम की साथियों सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता रामत्व है

राम ऐसे हैं जिनसे एक एक व्यक्ति प्रेम करता है

भैया सुरेश गुप्त जी के देश दर्शन से संबंधित क्या बात आचार्य जी ने बताई और उत्तरकांड में इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें