15.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा॥

राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा॥1॥


प्रस्तुत है  लब्धास्पद आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 15-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  625 वां सार -संक्षेप

हम जागरूक अन्तेवासी इन सदाचार वेलाओं से लाभ प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं आचार्य जी सदाचारमय विचारों को इस प्रकार सुस्पष्ट करते हैं कि हम उन्हें आत्मसात् कर सकें यदि दिशा दृष्टि हम सही रखें तो अध्यात्म और संसार दोनों में आगे निकल सकते हैं 


भारतीय साहित्य अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है इसके सभी क्षेत्रों के,भले ही उसमें सांसारिक बातें हों, मूल में परमात्मा रहता है

सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म

ज्ञान लगातार अपने सुस्पष्ट दृश्य दिखाता रहता है ज्ञान और ब्रह्म कभी कभी एक हो जाते हैं

विद्या क्या है?

आचार्यः पूर्वरूपम्। अन्तेवास्युत्तररूपम्‌। विद्या सन्धिः। प्रवचनं सन्धानम्‌।इत्यधिविद्यम्‌।


इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य जी बताते हैं कि शिक्षार्थी द्वारा विद्या प्राप्त करने के लिए शिक्षक के लिए विषय को और शिक्षार्थी के भाव को आत्मसात् करना अनिवार्य है

वास्तविक व्यक्तित्व विकास क्या है? इसे भी आचार्य जी ने बताया


एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए॥

अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा॥1॥

रामचरित मानस के उपसंहार में हम प्रवेश कर चुके हैं जहां ज्ञानी वशिष्ठ भगवान् राम को तत्त्व मान रहे हैं 

नाथ एक बर मागउँ राम कृपा करि देहु।

जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु॥49॥



इसे भक्ति कहते हैं

तुलसीदास जी ने कथा का उपसंहार अद्भुत कौशल से किया है

विरक्ति के सोपान सामने दिखते जा रहे हैं

हरन सकल श्रम प्रभु श्रम पाई। गए जहाँ सीतल अवँराई॥

भरत दीन्ह निज बसन डसाई। बैठे प्रभु सेवहिं सब भाई॥3॥


ज्ञानी जन समझ रहे हैं कि अब पटाक्षेप हो रहा है


अनुरक्ति में बहुत सारे काम करने वाले आदर्श राम विरक्ति की ओर हैं


आचार्य जी ने नारद शब्द का अर्थ बताया

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें