प्रस्तुत है लब्धोदय आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
वैशाख कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 16-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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626 वां सार -संक्षेप
चिन्तन मनन स्वाध्याय मनुष्य के शरीर को धन्य करने वाले आत्मदर्शन का द्वार है
श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं॥
ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती॥3॥
ऐसी रामचरित मानस कथा, जिसके हर भाग में तथ्य हैं,के अत्यन्त तत्त्वपूर्ण उत्तरकांड का आधार लेकर आचार्य जी द्वारा प्रस्तुत सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए हम इन वेलाओं की आजकल प्रतीक्षा करते हैं
ताकि आत्मदर्शन की अनुभूति कराने वाला हम लोगों का मार्ग भी प्रशस्त हो
हम आत्मानन्द की नई नई ऊंचाइयां प्राप्त करें
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग कोई भी कार्यक्रम करें तो उसमें उत्साह का प्रदर्शन तो हो साथ ही गहन चिन्तन मनन भी हो
रामचरितमानस में चार वक्ता और चार श्रोता है:
कागभुसुंडी ने गरुड़ जी को रामकथा सुनाई, उमेश्वर जी ने पार्वती जी को,याज्ञवल्क्य जी ने भारद्वाज जी को और तुलसीदास जी हम लोगों को सुना रहे हैं
गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा॥
राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा॥1॥
बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी॥
उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई॥3॥
पार्वती जी को संदेह था लेकिन शिव जी को नहीं कि
कर्मशील योद्धा अप्रतिम प्रेमी उदात्त ग्रहस्थ अद्वितीय संगठक शूरवीर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम गुणों की खान हैं
जिनकी कथा ऐसी जिससे सबको आनन्द आता है
हजारों में कोई एक धर्म के व्रत को धारण करने वाला होता है,करोड़ों धर्मात्माओं में कोई एक विषयों का त्यागी और वैराग्य परायण होता है
वेद कहते है कि करोड़ों विरक्तों में कोई एक ही यथार्थ ज्ञान को प्राप्त करता है और करोड़ों ज्ञानियों में कोई एक ही जीवन मुक्त होता है।
सत ते सो दुर्लभ सुरराया। राम भगति रत गत मद माया॥
सो हरिभगति काग किमि पाई। बिस्वनाथ मोहि कहहु बुझाई॥4॥
कागभुसुण्डी की कथा भी अद्भुत है
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें