.. विरक्त भाव से जब हम प्रकृति के दर्शन करते हैं तो सहज अपने भीतर सुकृति उत्पन्न होने लगती है....
प्रस्तुत है वेल्लहल -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 17-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
627 वां सार -संक्षेप
सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए हम प्रतिदिन इन वेलाओं की प्रतीक्षा करते हैं हमें इनमें अध्यात्म के दर्शन भी होते हैं
यद्यपि प्रपंची लोगों की रामचरित मानस के प्रति दुर्भावना भरी दृष्टि की ओर न ध्यान दें तो यह कथा संपूर्ण मानवता के लिए अत्यन्त कल्याणकारी है
प्रपंचियों द्वारा इसकी चर्चा इसके व्यापक प्रचार में सहायक हो रही है
प्रपंचियों द्वारा व्यक्त भावों में तर्क न कर अपने स्वभाव से मेल खाते लोगों के साथ इस कथा का हमें आनन्द लेना चाहिए
आइये प्रवेश करते हैं इस कथा में
सती के रूप में अद्भुत मोह वाली जगत के सारे रहस्यों को जानने वाली मां पार्वती जिन्हें लगता था कि शिव जी से बड़ा कौन है अब कहती हैं
श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं॥
ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती॥3॥
शिव जी से कहती हैं
आपने श्री रामचरित मानस का जो गान किया, उसे सुनकर मैंने अपार सुख पाया। आपने यह बताया कि यह अति सुंदर कथा काकभुशुण्डि जी ने गरुड़ जी से भी कही थी
शिव जी कहते हैं
दच्छ जग्य तव भा अपमाना। तुम्ह अति क्रोध तजे तब प्राना॥
मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भंगा। जानहु तुम्ह सो सकल प्रसंगा॥2॥
दक्ष के यज्ञ में तुम्हारा अपमान हुआ। तब तुमने अत्यंत क्रोध करके प्राण त्याग दिए थे और फिर मेरे सेवकों ने यज्ञ विध्वंस कर दिया था। वह सारा पूर्व जन्म का प्रसंग तुम जानती ही हो
तब अति सोच भयउ मन मोरें। दुखी भयउँ बियोग प्रिय तोरें॥
सुंदर बन गिरि सरित तड़ागा। कौतुक देखत फिरउँ बेरागा॥3॥
प्रकृति का रचनाकार अद्भुत है जब हम प्रकृति में प्रवेश करते हैं तो हमारा आनन्द अनन्तगुणित हो जाता है
आचार्य जी ने देश दर्शन का एक प्रसंग बताया
आचार्य जी ने यह भी बताया कि माया के सताने पर हम कहां भागते हैं और वैराग्य उत्पन्न होने पर कहां जाते हैं
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें