जौं अपने अवगुन सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ ॥
ताते मैं अति अलप बखाने। थोरे महुँ जानिहहिं सयाने ॥3॥
प्रस्तुत है शमनीषद -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 23-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
633 वां सार -संक्षेप
1शमनीषदः =राक्षस
हमारा शरीर आलस्य की ओर उन्मुख रहता है लेकिन यदि उसे आलस्य से विरत करना हो तो अभ्यास की आवश्यकता होती है
शरीर बोझ न लगे शरीर को सुविधाएं भी हम दें लेकिन उसके वशीभूत न हों हमें इसका प्रयास करना है
शरीर यदि बोझ लगता है तो हम कुछ सीख नहीं पाते क्योंकि सीखने के लिए हमें अपने comfort zone से बाहर आना होता है शिक्षार्थी होने के साथ साथ
हम सभी शिक्षक भी हैं और
शिक्षक के अभिप्रेत गुण हैं कि शिक्षक स्वस्थ स्वाध्यायी सुशील संतुष्ट और स्वाभिमानी हो
बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।
*मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग॥61ll
आइये इन्हीं सदाचारमय विचारों के प्रवाह में प्रवाहित होते हुए अपने गुरुत्व को जाग्रत करने के लिए आत्मबोध की अनुभूति के लिए अशान्त मन को शान्त करने के लिए चलते हैं
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥1॥
बहुत सी अन्तर्कथाओं को समाहित करने वाली अद्भुत पवित्र
राम कथा में
शिव जी कहते हैं
परमातुर बिहंगपति आयउ तब मो पास।
जात रहेउँ कुबेर गृह रहिहु उमा कैलास॥60॥
तब
बड़ी आतुरता से गरुड़ जी मेरे पास आए। उस समय मैं कुबेर के घर जा रहा था और आप कैलाश पर थीं
(उमा कभी सती थीं सती के जन्म की कथा किसी और कल्प की है शिव जी ने सत्तासी हजार वर्ष की समाधि लगाई है)
गरुड़ जी ने आदरपूर्वक मेरे चरणों में सिर नवाया और फिर मुझको अपना संदेह बताया
मैंने कहा
तबहिं होइ सब संसय भंगा। जब बहु काल करिअ सतसंगाll
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें