प्रस्तुत है ज्ञान -संवास ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 26-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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636 वां सार -संक्षेप
1=ज्ञान का घर
आचार्य जी का नित्य का हमें उत्साहित और प्रेरित करने का यह कार्य अद्भुत है
आत्मबोध की शून्यता से आत्माभिमान कम होता है
हमें भ्रमित किया गया कि अंग्रेजी साहित्य ज्यादा सम्पन्न है अपना साहित्य बहुत कम है जब कि सत्य इसके विपरीत है केवल रामचरित मानस में उन्नीस हजार शब्दों का
प्रयोग हुआ है जब कि शेक्सपीयर का शब्द भंडार केवल छह हजार शब्दों का है
आचार्य जी ने पं धनराज शास्त्री के अनुसंधान की चर्चा की और विभिन्न रामायणों के श्लोकों की संख्या बताई
आत्मबोध जाग्रत होगा तो अनुसंधान की प्रवृत्ति आयेगी
आत्मबोध जाग्रत करने के लिए संतोष प्राप्त करने के लिए आइये प्रवेश करते हैं रामकथा में
कथा अरंभ करै सोइ चाहा। तेही समय गयउ खगनाहा॥
आवत देखि सकल खगराजा। हरषेउ बायस सहित समाजा॥3॥
कागभुशुण्डिजी कथा आरंभ कर ही रहे थे कि उसी समय पक्षीराज गरुड़ जी वहाँ पहुँच गए
गरुड़ जी को आते देखकर काकभुशुण्डि जी सहित सारा पक्षी समाज खुश हो गया
सदा कृतारथ रूप तुम्ह कह मृदु बचन खगेस।॥
जेहि कै अस्तुति सादर निज मुख कीन्ह महेस॥63 ख॥
पक्षीराज गरुड़ जी ने मृदु वचन कहे- आप तो सदा ही कृतार्थ रूप हैं, जिनकी बड़ाई स्वयं शिव जी ने आदरपूर्वक अपने मुख से की है
सुनहु तात जेहि कारन आयउँ। सो सब भयउ दरस तव पायउँ॥
देखि परम पावन तव आश्रम। गयउ मोह संसय नाना भ्रम॥1॥
वहां पहुंचकर मोह भ्रम शंका सब दूर हो गए
गरुड़ जी की विनम्र, सरल, सुंदर, अत्यंत पवित्र वाणी सुनते ही कागभुशण्डिजी के मन में परम उत्साह हुआ और वे श्रीराम जी के गुणों की कथा कहने लगे
आचार्य जी ने लीला और वास्तविकता में अन्तर बताया
जीव जिसे वास्तविकता मानकर भ्रमित रहता है वह ब्रह्म की लीला है और जो जीव इस संसार को लीलामय मान लेता है वह ब्रह्मत्व को प्राप्त कर लेता है
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें