27.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 27-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 रेफ आत्मचिन्मय अकल, परब्रह्म पररूप।

हरि-हर- अज- वन्दित-चरन, अगुण अनीह अनूप।1।


प्रस्तुत है  ज्ञान -विरेफ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  27-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  637  वां सार -संक्षेप

1=ज्ञान की नदी

रामचरित मानस और कवितावली दोनों अद्भुत ग्रंथ हैं तुलना करें तो 

रामचरित मानस में बाल कांड और अयोध्या कांड विस्तार से हैं जब कि कवितावली में उत्तर कांड विस्तार से लिखा गया है


मानस पूर्ण हो चुकी थी तुलसीदास जी काशी में रह रहे थे 

काशी में महामारी आ गई

तुलसीदास ने उस समय बहुत सेवा की

कवितावली में महामारी का उल्लेख करते हुए तुलसी कहते हैं 


आश्रम -बरन कलि बिबस बिकल भए,

निज-निज मरजाद मोटरी-सी डार दी।।


संकर सरोष महामारिहीतें जानियत,

साहिब सरोष दूनी-दिन-दिन दारदी।।


 नारि-नर आरत पुकारत , सुनै न कोऊ ,

काहूँ देवतनि मिलि मोटी मूठि मारि दी।।

लेकिन 

भयभीतों की रक्षा करने वाले कृपालु भगवान् राम की कृपा होते ही महामारी समाप्त हो गई

यह है भक्ति की पराकाष्ठा

भक्ति जो प्राप्ति निवृत्ति के भाव से दूर हो

स्वार्थ रहित हो

तुलसी ऐसी ही अखंड भक्ति की अनुभूति कर चुके थे


आइये ज्ञान के साथ इसी भक्ति की झलक पाने के लिए

प्रवेश करते हैं मानस के उत्तरकांड में


एक सोरठा है

मोहि भयउ अति मोह प्रभु बंधन रन महुँ निरखि।

चिदानंद संदोह राम बिकल कारन कवन॥68 ख॥


युद्ध में प्रभु को नागपाश से बंधा देख मुझे अत्यंत मोह हो गया था कि श्री राम जी तो सच्चिदानंद हैं वे किस कारण व्याकुल हैं


इसी भ्रम के निवारण के लिए यह प्रेरक स्थान है जहां शिव जी को भी आनन्द मिला

राम जी की कृपा हो जाए तो सारे संशय दूर हो जाते हैं


तुम्हहि न संसय मोह न माया। मो पर नाथ कीन्हि तुम्ह दाया॥

पठइ मोह मिस खगपति तोही। रघुपति दीन्हि बड़ाई मोही॥2॥

इसका उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि विष्णुभक्तों की परम्परा में विष्णुभक्त एक दूसरे को प्रणाम करते हैं


मायामय संसार से छूटने के लिए रामभक्ति आवश्यक है

आचार्य जी ने यह भी बताया कि नाट्यमञ्च वास्तविकता नहीं है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने किसको चप्पल फेंक कर मारी थी जानने के लिए सुनें