30.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 30 -04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मनुष्य का शरीर एक ईश्वरीय यंत्र है 

जगत्पिता-प्रदत्त नित्य सिद्ध शक्तिमंत्र है, 

स्वतंत्र शक्तिमंत है अनंत तेजवंत है, 

ये तबतलक कि जबतलक विशुद्ध भक्तिमंत है।


प्रस्तुत है  शक्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  30 -04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  *640  वां* सार -संक्षेप

1=शक्तिशाली

हम मनुष्य हैं हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें और अपनी कल्पनाशक्ति को असीमित ऊंचाइयों तक ले जाएं

दम्भ मद से दूर रहें 

श्रीरामचरित मानस में  ज्ञान, भक्ति, भाव, विचार, क्रिया, व्यवहार, प्रेम, निष्ठा आदि का समावेश है

  भक्ति  वह भी विशुद्ध बहुत अद्भुत है

विद्वानों की नगरी काशी में रहते हुए 

विशुद्ध भक्ति का भाव लगातार प्रसिद्ध हो रहे तुलसीदास जी के मन में उठा

होगा तो उन्होंने कह दिया 


कोऊ कहै करत कुसाज दगाबाज बड़ो,

कोऊ कहै राम को गुलाम खरो खूब है।

 साधु जानै महासाधु, खल जाने महाखल,

 बानी झूठी साँची कोटि उठत हबूब है ॥

चाहत न काहू सों, न कहत काहू की कछु,

 सबकी सहत उर अंतर न ऊब है।

तुलसी को भलो पोच हाथ रघुनाथ ही के,

राम की भगति भूमि, मेरी मति दूब है ॥



 कुछ लोग कहते हैं कि मैं बड़ा दगाबाज़ हूँ, कुसाज अर्थात् धोखा देने के लिए बुरा साजोसमान इकट्ठा करता हूँ, तो कुछ लोग कहते हैं कि मैं रामजी का अच्छा भक्त हूँ

 मुझे साधु सरल जानते हैं और दुष्ट महादुष्ट , करोड़ों  झूठी-सच्ची बातें मेरे लिए पानी के बुदबुदे की तरह हैं


 लेकिन न मैं किसी से कुछ चाहता हूँ, और न किसी से कुछ कहता हूँ, सब की सह लेता हूँ।

मेरे मन में  अब कुछ नहीं है तुलसी का भला और बुरा प्रभु राम के हाथ है

राम की भक्ति रूपी दूब मेरी देह रूपी भूमि में सब जगह विराजमान है

दम्भ में डूबे  गरुड़ जी को कागभुशुंडी जी  समझा रहे हैं


निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई।

सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥ 73 ख॥


सगुण रूप धरने में संसार के सारे दोष भी आ जाते हैं

अभिमान संसार में लिप्तता है भगवान् राम अपने भक्त को अभिमान से दूर रखते हैं


जिमि सिसु तन ब्रन होई गोसाईं। मातु चिराव कठिन की नाईं॥4॥


हम बचपन की यादों को ताजा करें तो हमारे सद् शिक्षक भी इसी तरह का व्यवहार करते थे क्योंकि उन्हें पता रहता था कि इससे आगे अच्छा ही होगा


नाथ इहाँ कछु कारन आना। सुनहु सो सावधान हरिजाना॥

ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर॥


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें