2.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 02- -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।


स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।



प्रस्तुत है लब्धकीर्ति¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  02- -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  642  वां सार -संक्षेप

1=विख्यात



अभी तक हम देखते आएं हैं कि आचार्य जी किसी भी परिस्थिति में इन सदाचार वेलाओं का क्रम टूटने नहीं देना चाहते इसी कारण प्रतिदिन सदाचारमय विचारों से हम लाभान्वित हो रहे हैं

आचार्य जी का परामर्श है कि हम अखंड आनन्द में रहने की चेष्टा अवश्य करें शरीर को उचित कार्य व्यवहार में लगाने की चेष्टा करें संतुष्ट रहने का प्रयास करें विश्वास से लबरेज रहें अनुभव करें कि हम सब इस युग के रत्न हैं 

हमारे यहां वैसे भी किसी भी परिस्थिति में भाव -यज्ञ विचार -यज्ञ वर्जित नहीं है मूर्तिपूजा वर्जित हो सकती है

लेकिन हमारे मन- मंदिर का द्वार सदैव खुला रहता है

इस मन -मंदिर में उपासना करने से सांसारिक धर्म को निभाते समय वर्जित कर्मों को करने से हम बच जाते हैं

परमात्मा स्वयं उसी के बनाए इस मंदिर में निवास करता है

उसका प्राणिक तत्व इसमें विद्यमान है

यह भाव का संसार सबको समझ में नहीं आता

कुछ लोग कुभाव ले आते हैं


भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥

कुभाव में भी श्री राम जय राम जय जय राम उच्च स्वर से करें तो कुभाव नष्ट हो जाता है

आत्महत्या भी कुभाव है कायरता है 

हमारे शास्त्रों में हरित वृक्ष का उच्छेदन वर्जित है जीवित पशु का वध वर्जित है

मन में प्रश्न चलें और मन में उनका  उत्तर खोजें तो ज्ञान के अभाव में हम अनर्थ कर बैठते हैं



ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर॥2॥


जौं सब कें रह ज्ञान एकरस। ईस्वर जीवहि भेद कहहु कस॥

माया बस्य जीव अभिमानी। ईस बस्य माया गुन खानी॥3॥



नकली कार्यों और ढोंगों से हमें अपने को बचाना चाहिए

सरकते हुए संसार को हम द्रष्टा रूप में देखते हैं तो हम स्थिर रहते हैं


विकृत रूप से खानपान से भी इसे विनष्ट न करें


स्वाभाविक रूप से शरीर का नष्ट होना अलग बात है हमें अपनी ओर से इसे सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए


प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।


हमारे ऋषि यशः काय से आज भी जीवित हैं

भगवान की अभिव्यक्ति और अनुभूति में अंतर है भक्ति शुद्ध हो इसे आचार्य जी ने किस प्रकार स्पष्ट किया आदि जानने के लिए सुनें