प्रस्तुत है लब्धवर्ण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 04 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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644 वां सार -संक्षेप
1=प्रसिद्ध
आचार्य जी ने कल बताया था कि हमें मनुष्य का जीवन मिला है उसे जीना है ढोना नहीं है
हमें नित्य कुछ समय भाव -जगत के लिए निकालना चाहिए अन्यथा सांसारिक प्रपंचों में ज्यादातर समय व्यर्थ ही चला जाता है
भक्त को विश्वास रहता है कि भगवान् सब अच्छा ही करेगा
हमें दुविधा का त्याग करना चाहिए भगवान् पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए
आचार्य जी ने अपने अध्यापक श्री माताजी प्रसाद का एक प्रसंग बताया
कि कैसे एक व्यक्ति रमखुदइया में पड़ गया
संसारी व्यक्ति के समझाने के ऐसे अनेक उदाहरण हैं
जिस कर्म में हम लगें उसमें इतने रम जाएं कि फिर और कुछ ध्यान न रहे
इसे भाव में बने रहना कहते हैं
कर्म करते हुए विरक्त रहना हमें सीखना चाहिए
उत्तरकांड में आजकल कागभुशुंडी जी और गरुड़ जी का संवाद चल रहा है
संसारी स्वरूप से इतर अर्जुन ने जब श्रीकृष्ण का तात्विक स्वरूप देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा
इसी तरह यहां भी
मूदेउँ नयन त्रसित जब भयउँ। पुनि चितवत कोसलपुर गयऊँ॥
मोहि बिलोकि राम मुसुकाहीं। बिहँसत तुरत गयउँ मुख माहीं॥1॥
जो नहिं देखा नहिं सुना जो मनहूँ न समाइ।
सो सब अद्भुत देखेउँ बरनि कवनि बिधि जाइ॥80 क॥
श्री रामजी के पेट में मैंने बहुत तरह के जगत् देखे, जो देखते ही बनते थे, उनका वर्णन नहीं किए जा सकता वहाँ फिर मैंने माया के स्वामी भगवान श्री राम को देखा
तुलसीदास ने कथा के रूप में जो ज्ञान दिया अद्भुत है
शरणागत होने और शान्त होकर शरणागत होने में अन्तर है
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें