5.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 05 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।


जो मान और मोह से रहित हो गये हैं, जिन्होंने आसक्ति से उत्पन्न  दोषों पर विजय प्राप्त कर ली है, जो नित्य  परमात्मा में रत हैं, जो  सम्पूर्ण कामनाओं से रहित हो गये हैं, जो सुख-दुःख वाले द्वन्द्वों से मुक्त हो गये हैं, ऐसे साधक भक्त उस अविनाशी परमपद को प्राप्त होते हैं।


प्रस्तुत है लब्धपरभाग ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  05 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  645 वां सार -संक्षेप

1=उत्तमता को प्राप्त



दिव्य स्वरूप को प्राप्त ये सदाचार संप्रेषण हम राष्ट्र भक्तों के लिए अत्यन्त  उपयुक्त प्रेरक प्रभावकारी कल्याणकारी और उचित हैं


क्रोध पर नियन्त्रण करने की विधि बताते हुए आचार्य जी ने गीता के अभ्यस्त पुरुष बैरिस्टर साहब के सात्विक क्रोध को उद्धृत किया

गीता के 15 वें अध्याय में

कहा गया है 

ज्ञानी  इस संसार वृक्ष को ऊर्ध्वमूल और अध:शाखा वाला अश्वत्थ व अव्यय कहते हैं; जिसके पत्ते वेद हैं

ऐसे वृक्ष को जानने वाला वेदवित् है

कर्मों का अनुसरण करने वाली इसकी शेष जड़ें नीचे फैली हुईं हैं


रामचरित मानस भक्ति ज्ञान विश्वास श्रद्धा ध्यान अनुरक्ति प्रेम की अद्भुत कथा है

आचार्य जी ने नवधा भक्ति, चौदह प्रकार की भक्ति, दशधा भक्ति, प्रेमाभक्ति पराभक्ति की ओर संकेत किया  

ज्ञान के भी इसी तरह बहुत से भेद हैं बारह प्रकार के चरित्र हैं

हम इनमें न उलझकर आइये प्रवेश करें मानस के उस भाग में


अब सुनु परम बिमल मम बानी। सत्य सुगम निगमादि बखानी॥

निज सिद्धांत सुनावउँ तोही। सुनु मन धरु सब तजि भजु मोही॥1॥

जहां भगवान् कहते हैं कि मनुष्य उनके सबसे प्रिय हैं

सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए॥2॥


और उनमें भी


भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी॥5॥


(नीच अर्थात् सांसारिक व्यवहार से शून्य)

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया

विस्मृति भी कैसे एक वरदान है

आदि जानने के लिए सुनें