प्रस्तुत है लब्धप्रत्यय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 06 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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646वां सार -संक्षेप
1=जिसने विश्वास जीत लिया हो
One who has won confidence
इस समय विश्वास अस्त व्यस्त है यह Crisis of faith का जमाना है आपस में विश्वास की कमी दिखती है
अपने पर ही विश्वास नहीं रहता
आत्मविश्वास के डिगने पर व्यक्ति उतना ही चिन्तित व्याकुल दुःखी रहता है उसमें अनेक दोष आ जाते हैं
प्रातःकाल ये सदाचार वेलाएं हमें उत्साह विश्वास आस्था प्रेम आदि से भर देती हैं
आत्मविश्वास से लबरेज कर देती हैं हम विवेचन में न जाकर आनन्द में डूबने का प्रयास करें
जिस भाव से जो भगवान् की भक्ति करता है उसी के अनुरूप उसे फल मिलता है और वह जो भी करता है वह मेरा अनुगमन है
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।
सामान्य जन इस लोक में कर्मों के फल को चाहते हुए देवताओं की पूजा करते हैं क्योंकि मनुष्य लोक में कर्मों के फल शीघ्र प्राप्त होते हैं
फल प्राप्त होते हैं जल्दी प्राप्त होते हैं लेकिन जितनी जल्दी प्राप्त होते हैं उतने ही जल्दी नष्ट होते हैं
निज अनुभव अब कहउँ खगेसा। बिनु हरि भजन न जाहिं कलेसा॥
राम कृपा बिनु सुनु खगराई। जानि न जाइ राम प्रभुताई॥3॥
(कागभुशुंडी जी कह रहे हैं)
जब तक हम किसी को जानते नहीं हैं तब तक उससे प्रेम भी नहीं होता है
यह लगाव विश्वास में बदल जाता है और विश्वास अडिग हो जाता है वही भक्ति है उसी भक्ति में शक्ति है
जानें बिनु न होइ परतीती। बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती॥
प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई। जिमि खगपति जल कै चिकनाई॥4॥
आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि भक्त कैसे मस्त है
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया कौन से दो महत्त्वपूर्ण सोरठे आचार्य जी ने आज बताए जानने के लिए सुनें