रामु काम सत कोटि सुभग तन। दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन॥
सक्र कोटि सत सरिस बिलासा। नभ सत कोटि अमित अवकासा॥4॥
प्रस्तुत है नदीष्ण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 07 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
647 वां सार -संक्षेप
1=अनुभवी
ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी हैं
यदि हम अपने शिष्यत्व को पल्लवित कर लेते हैं तो ये हमें बहुत अच्छे लगेंगे
यदि हम व्यवधान पर ध्यान देंगे तो जिस कार्य को करते समय व्यवधान उपस्थित हुआ है उस कार्य को पूर्ण नहीं कर पायेंगे
इसलिए हमें व्यवधानों को न देखकर अपने लक्ष्य को ही प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए
चिन्तन ध्यान धारणा मनन पूजन भजन हमें बहुत सहारा देते हैं अपने पास बैठकर कुछ समय के लिए यह भाव अवश्य आना चाहिए कि मैं कौन हूं मनुष्य रूप में मेरे जन्म लेने का क्या कारण है
हमारे अन्दर यह भाव भी आना चाहिए कि अगली पीढ़ी को हम कैसे सुसंस्कृत करें
अगर ऐसा होता है तो यह परमात्मा की कृपा है
प्रेम आत्मीयता विश्वास के साथ अपने संगठन का विस्तार करें
इष्टदेव की भी कृपा है जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं वे हमारे गुरु हूं परमात्मा तक पहुंचने का माध्यम हैं
मां पिता गुरु देश कर्म आचार्य कोई भी इष्ट हो सकता है
हम परमात्मा के अंश हैं हम एक हैं इस प्रकार की गहन अनुभूति ही महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति का कारण बनती है
यही अभिव्यक्ति कागभुशुण्डी जी को भी हो गई
कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा॥4॥
विश्वास के बिना कोई भी सिद्धि नहीं हो सकती है
इसी प्रकार हरि के भजन के बिना जन्म-मृत्यु के भय का नाश नहीं होता॥
बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥90 क॥
विश्वास बहुत आवश्यक है अपने निजत्व का विकास अद्भुत है
भगवान् राम द्रवित तब होते हैं जब हमारा विश्वास दृढ़ हो जाता है
राम, रामत्व का बोध,
राम की कथा हमें आनन्द देती है
राम संपूर्ण समस्याओं का शमन करते हैं
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जय श्री राम मात्र नारा न होकर किसके लिए आत्मा का उद्घोष था आदि जानने के लिए सुनें