8.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 08 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 रामु अमित गुन सागर थाह कि पावइ कोइ।

संतन्ह सन जस किछु सुनेउँ तुम्हहि सुनायउँ सोइ॥92 क॥


श्री रामजी अपार गुणों के समुद्र हैं  उनकी कोई थाह  नहीं पा सकता है

जैसा संतों से मैंने  सुना था, वही आपको सुनाया



प्रस्तुत है श्रद्धा -सन्तार ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 08 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  648 वां सार -संक्षेप

1=श्रद्धा- तीर्थ


सांसारिकता से मुक्त होकर राममय होकर भावों में बहते हुए भक्ति और प्रेम में गोता लगाने के लिए

आनन्द प्राप्ति के लिए आइये इस सदाचार वेला में प्रविष्ट हो जाएं


जागैं जोगी जंगम, जती जमाती ध्यान धरैं,

⁠⁠डरैं उर भारी लोभ मोह कोह काम के।

जागैं राजा राजकाज, सेवक समाज साज,

⁠⁠सोचैं सुनि समाचार बड़े बैरी बाम के॥

जागैं बुध विद्याहित पंडित चकित चित,

⁠⁠जागैं लोभी लालच धरनि धन धाम के।

जागैं भोगी भोगही बियोगी रोगी सोगबस,

⁠⁠सोवै सुख तुलसी भरोसे एक राम के॥

(कवितावली उत्तरकांड 109 वां छंद )

इस छंद में अलग अलग प्रकार से जागने के कारणों का वर्णन है 

योगी जन, शिव-उपासक और यति जो सदा ईश्वर का ध्यान करने वाले और लोभ, मोह, क्रोध, काम आदि षड्रिपु से डरने वाले हैं वे सदा जगते हैं। राजा  राज-काज के लिए और उनके सेवकगण शत्रु के समाचार सुनकर सोच में पड़कर जागा करते हैं। विद्या हेतु पण्डित लोग एकाग्रचित्त होकर जागते हैं और लोभी जन धन आदि के लालच में, भोगी भोग के लिए, वियोगी विरह में, रोगी रोग के कारण जागते हैं

लेकिन तुलसीदास प्रभु राम के भरोसे सुखपूर्वक सोता है।

राम के प्रेम की अनुभूति गहराने पर आनन्द का लाभ मिल जाता है 

समाधिस्थ होकर सोने की चर्चा है इसमें


भाव बस्य भगवान सुख निधान करुना भवन।

तजि ममता मद मान भजिअ सदा सीता रवन॥92 ख॥

 हम प्रवेश कर चुकें हैं उत्तर कांड में जहां गरुड़ जी और कागभुशुंडी जी का संवाद चल रहा है


पक्षीराज जी मस्त हो गए

उन्हें ज्ञान होने पर भान हो गया कि मैं कौन हूं

वे विष्णु के पार्षद हैं शिष्यत्व की अनुभूति हो गई

प्रेमातिरेक होने पर भेद बुद्धि समाप्त हो जाती है

भक्त भगवान् हो जाता है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया मंडनमिश्र की चर्चा क्यों हुई आदि जानने के लिए सुनें