9.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 09-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जब तक हैं तन में प्राण प्राण में ओज

ओज में गति मति की संयुति है

तब तक है यह संसार सारवत 

और प्रभाव प्रगति है

निष्प्राण देह संसार सरिस हो जाती

ऐरों गैरों की सदा ठोकरें खाती

इसलिए सखे तुम करो प्राण परिपोषण

होने दो  किञ्चित मात्र न अपना शोषण



प्रस्तुत है लब्धलक्ष ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 09-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  649 वां सार -संक्षेप

1=जिनका निश्चित लक्ष्य हो




हम प्रविष्ट होने जा रहे हैं सदाचारमय विचारों वाली वेला में जिससे हम आनन्द में डूबने का भाव, आत्मबोध कि हम शरीर नहीं हैं,भक्ति जिसका अर्थ रोना नहीं है और  जो ज्ञान को निरुत्तरित कर दे,

शिष्यत्व की अनुभूति करते हुए हनुमान जी महाराज की शक्ति बुद्धि आदि बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं बस हमें  पूर्ण विश्वास रखना है

हमें अपना शोषण नहीं होने देना है हमें यह अनुभव करना है कि हमें भगवान् ने कर्म करने के लिए प्राणिक ऊर्जा और शक्ति दी है


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

संसार में सब कुछ करने की आवश्यकता है


संसार से भागे फिरते हो

भगवान को तुम क्या पाओगे

इस लोक को भी अपना ना सके

उस लोक में भी पछताओगे



संसार में ऐसे बहुत से व्यवहार हैं जो रूप बदल लेते हैं स्व का स्वरूप बदलता है तो हम स्व को पर समझने लगते हैं  अस्तित्वहीन माया में मस्त हो जाते हैं

सुख प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं


आचार्य जी ने सुदर्शन जी का एक प्रसंग बताया जिसमें उन्होंने रुदनमंडलों को गठित होने से बचने के लिए कहा क्योंकि ये रुदनमंडल भक्ति को शक्तिहीन बना देते हैं



भक्त को रुदन नहीं करना है उसे कमजोर नहीं बनना है

आचार्य जी ने एक बहुत ही मार्मिक प्रसंग बताया जिसमें राधा जी कृष्ण जी में विलीन हो गईं थीं



गरुड़ जी और कागभुशुंडी जी का संवाद चल रहा है जिसमें ज्ञान और भक्ति का अद्भुत सम्मिश्रण हमें उत्थित उत्साहित प्रबोधित करने के लिए दिया गया है


गरुड़ गिरा सुनि हरषेउ कागा। बोलेउ उमा परम अनुरागा।।

धन्य धन्य तव मति उरगारी। प्रस्न तुम्हारि मोहि अति प्यारी।।

सुनि तव प्रस्न सप्रेम सुहाई। बहुत जनम कै सुधि मोहि आई।।


जिनका प्राण परिपोषित रहता है जो तत्त्व में जीते हैं उन्हें जन्म जन्मान्तर की स्मृति रहती है जितने क्षण जीते हैं उन्हें आत्मबोध रहता है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया 

वरदान और अभिशाप एक ही सिक्के के दो पहलू कैसे हैं

रघुवीर का भजन अत्यधिक तात्विक कैसे है

आदि जानने के लिए सुनें