10.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 तजउँ न तन निज इच्छा मरना। तन बिनु बेद भजन नहिं बरना॥

प्रथम मोहँ मोहि बहुत बिगोवा। राम बिमुख सुख कबहुँ न सोवा॥3॥


प्रस्तुत है लब्धलक्ष्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 10-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  650 वां सार -संक्षेप

1=जिसका निश्चित लक्ष्य हो




हम प्रविष्ट हो चुके हैं सदाचार वेला में

आइये सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर अपने जीवन को समृद्ध बनाएं

इन्द्रियों पर नियन्त्रण का प्रयास करें ताकि इन्द्रियां हमारे शरीर की शत्रु न बनें


आज कल हम लोग मानस के पाठ में रत हैं लेकिन 

हम अध्ययन के साथ मनन करने का प्रयास करें और तात्विक शक्ति को अपने अंदर उतारने की चेष्टा करें तो इससे और अधिक लाभ मिलेगा



जब तक हैं तन में प्राण प्राण में ओज

ओज में गति मति की संयुति है

तब तक है यह संसार सारवत 

और प्रभाव प्रगति है

निष्प्राण देह संसार सरिस हो जाती

ऐरों गैरों की सदा ठोकरें खाती

को उद्धृत करते हुए आचार्य जी कहते हैं जब हम किसी अपने से आहत हो जाते हैं तो अन्दर ही अन्दर परेशान होने लगते हैं धोखा बहुत खलता है 

भारत में तो यह कुछ ज्यादा ही है कि अपने अपनों के शत्रु बने रहे हैं


हमारे देश में तुलसीदास कबीर धन्ना सेन रविदास भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत हैं  अवतार हैं यह लम्बी भक्ति परम्परा हमारे देश की प्राणिक ऊर्जा है इसके न होने से इतिहास ही बदल जाता


भर्तृहरि के वैराग्य शतक का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि प्रेम एकलमार्गी है

हम एकल होने के बाद अपने आत्मानन्द में प्रविष्ट  नहीं हो पाते

यही तो संसारत्व है इसी संसारत्व को रामत्व में परिवर्तित करने के लिए चर्चा हो रही है


रामत्व अर्थात् अपने जीवन में  विचार कर्म  चिन्तन मनन तपस्या भक्ति पुरुषार्थ करना

जो इस मनुष्य रूप में मिले शरीर से ही संभव है इसलिए यह तन महत्त्वहीन नहीं है

हमें इस शरीर की रक्षा करनी है यह शरीर भोग के लिए न होकर भक्ति तपस्या कर्म चिन्तन मनन स्वाध्याय ध्यान के लिए है राम भजन के लिए है


एहिं तन राम भगति मैं पाई। ताते मोहि ममता अधिकाई॥

जेहि तें कछु निज स्वारथ होई। तेहि पर ममता कर सब कोई॥4॥



राम बिमुख लहि बिधि सम देही। कबि कोबिद न प्रसंसहिं तेही॥

राम भगति एहिं तन उर जामी। ताते मोहि परम प्रिय स्वामी॥2॥





इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया 

चमारों की सभा किसने कहा

आदि जानने के लिए सुनें


(आचार्य जी ने मानद सदस्य भैया सुनील जी के त्रयोदशा संस्कार की सूचना दी)