11.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 निराशा या हताशा जब स्वयं में पैठ जाती है, 

तभी धुर राह में संभ्रम जवानी बैठ जाती है, 

अभी तुम सब जवानी के असल किरदार हो प्यारे, 

तुम्हारी ही बदौलत नयी पीढ़ी गुनगुनाती है।


प्रस्तुत है लब्धविद्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 11-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  651 वां सार -संक्षेप

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भारतवर्ष के प्राचीन विद्वानों ज्ञानियों चिन्तकों विचारकों से प्रेरणा प्राप्त कर  चिन्तन मनन स्वाध्याय कर राष्ट्र -निर्माण में महती भूमिका निभाने का संकल्प लेकर

मन्त्रों के समान भावाव्यक्तियां करने वाले

 अद्वितीय शिक्षकत्व के उदाहरण आचार्य जी नित्य हमारे लिए उपयुक्त अपने सदाचारमय विचारों से हमें लाभान्वित कर रहे हैं




आचार्य जी ने अपने विद्यालय के वर्तमान प्रधानाचार्य श्री राकेश राम त्रिपाठी जी की चर्चा की जिन्होंने लोकव्यवहार और सहानुभूति की अद्भुत मिसाल पेश की

साठ सत्तर किलोमीटर चलकर वे वर्तमान में द्वादश कक्षा के छात्र भैया अभिषेक के घर पहुंचे जिनके पिता  सुनील जी का हाल में ही निधन हो गया था


दूसरे के दुःख में सहभागी बनकर जो सहानुभूति की अभिव्यक्ति होती है तो लोकव्यवहार के इन उदाहरणों से संसार नन्दनवन लगने लगता है


अवध प्रभाव जान तब प्रानी। जब उर बसहिं रामु धनुपानी॥

सो कलिकाल कठिन उरगारी। पाप परायन सब नर नारी॥4॥


जीव अवध का प्रभाव  तब जान पाता है, जब हाथ में धनुष धारण करने वाले प्रभु राम जी उसके हृदय में बस जाते हैं। हे गरुड़जी महाराज ! वह कलिकाल बड़ा ही कठिन था जिसमें सभी नर-नारी पाप कर्मों में लिप्त थे

हम प्रवेश कर चुके हैं उत्तरकांड में


अवध के प्रभाव की तरह भारत का प्रभाव हमें तभी पता चलेगा जब भारत की भावना हमारे अंदर रहेगी

क्रान्तिकारी सैनिक समाजसेवक भक्त त्यागी इसी तरह भारत मां की सेवा करते हैं



आचार्य जी ने अद्भुत भावाव्यक्तियां करने वाले स्वामी विवेकानन्द का उदाहरण दिया


कथा से कथा संयुत करने में तुलसीदास जी का कौशल अद्भुत है


आचार्य जी ने हनुमान जी और एक साधु से संबन्धित वह कथा सुनाई जिसमें कई कल्पों की चर्चा आई

हनुमान जी भ्रमित हो गए कि किस कल्प की मुद्रिका लें


तपस्वी के लिए तप का महत्त्व है शरीर का नहीं

शरीरान्तरण होता रहता है स्मृतियां विलुप्त नहीं होतीं


आज जिस पर प्रलय विस्मित

मैं लगाती चल रही नित

मोतियों की हाट औ’

चिनगारियों का एक मेला

(दीपशिखा -महादेवी वर्मा )


मनुष्य का शरीर मरता है हम नहीं मरते


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें