12.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अलुप्तयशस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 12-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  652वां सार -संक्षेप

1=यशस्वी


आजकल रामचरित मानस का आधार लेकर इन सदाचार वेलाओं का अनवरत प्रसारण जारी है इन वेलाओं से हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर लाभान्वित हो रहे हैं इन्हीं विचारों से हम  यदि नई पीढ़ी को अवगत करा देते हैं तो वास्तव में इनको संप्रेषित करने का उद्देश्य सफल हो जाता है


हमें इतिहास अपना ध्यान रखना है

कि अपने पूर्वजों का मान रखना है

अरे अनिश्चय और दुविधा हो न  क्षण भर भी कभी मन में

भविष्यत के लिए निज सांस्कृतिक उत्थान लखना है


हमें अपनी संस्कृति का सिलसिला चलाते रहना है

पश्चिमी देशों को देखकर भ्रम नहीं पालना है

कायर लोगों की भाषा नहीं बोलनी है हमारे आदर्श तो वो राम हैं जो धनुष बाण हाथ में लिए हैं


(कहा कहौं छवि आज की, भले बने हो नाथ । तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुष बान लो हाथ ।। )


हमें उस तरह के माता पिता नहीं बनना है कि


मातु पिता बालकन्हि बोलावहिं। उदर भरै सोइ धर्म सिखावहिं॥4॥

हमें इस कलियुग में नये तुलसी बनकर अपनी भूमिका को निभाना है 


भगवान् राम तो परमात्मा हैं

 नाना पुराणों का अध्ययन करने के पश्चात अनुभव करने के बाद जीवन को सही ढंग से जीते हुए तुलसीदास हमें मानस के रूप में अद्वितीय ग्रंथ देते हैं

शाश्वत द्रष्टा तुलसीदास जी के अनुसार राम विष्णु अवतार नहीं हैं  परमात्मा  को स्वयं अवतरित होकर मनुष्य का तन धारण कर लीला करनी    पड़ी   क्योंकि

गुर सिष बधिर अंध का लेखा। एक न सुनइ एक नहिं देखा॥3॥


शिष्य और गुरु में बहरे और अंधे जैसा हिसाब किताब होता है। शिष्य गुरु के उपदेश नहीं सुनता और गुरु को ज्ञानदृष्टि ही प्राप्त नहीं है


हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुर घोर नरक महुँ परई॥


समय समय पर हमें ऐसे संत ज्ञानी विरक्त देश के प्रति अनुरक्ति रखने वाले भक्त मिलते रहे हैं जिनकी कथाएं अत्यधिक प्रभावकारी रही हैं


भारत के अद्भुत जीवन को हम पहचानने की चेष्टा करें


उत्तरकांड में एक सोरठा है


जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ।

मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ॥98 ख॥

कलियुग का वर्णन हो रहा है



नारि बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं॥

सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेल जनेऊ लेहिं कुदाना॥1॥

आचार्य जी ने नारी शब्द  शूद्र शब्द की व्याख्या की

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें