राम नाम को प्रभाउ पाउ महिमा प्रताप
तुलसी से जग मनियत महामुनि सो ।”
प्रस्तुत है अलुप्तमहिमन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 13-05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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653 वां सार -संक्षेप
1=जिसकी अक्षुण्ण कीर्ति बनी हुई है
आचार्य जी की भाव विचार गुञ्जा भक्ति शक्ति संयम अध्ययन स्वाध्याय साधना -तत्त्व वाली अभिव्यक्तियां सांसारिकता में लिप्त हम लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं और यह परमात्मा के भक्त सेवक हनुमान जी की कृपा ही है
हमें इन तत्त्वमय विचारों का लाभ उठाना चाहिए हम लोगों को अपने विचार पल्लवित करने चाहिए हमारी सात्विकता विकसित होनी चाहिए
कलियुग में रामभक्ति का आधार लेकर हम अपनी शक्ति का संचयन कर परमार्थ के लिए तैयार रहते हैं राष्ट्रार्पित जीवन जीते हैं तो यह कलियुग सतयुग बन जाता है
तुलसीदास जी का रामबोला से गोस्वामी तुलसीदास बनने का सफर इतना सरल नहीं था । उन्होंने अपनी बाल्यावस्था की दीन-दशा को निम्नांकित मार्मिक शब्दों में चित्रित किया है
जायो कुल मंगन बधावनो बजायो सुनि,
भयो परिताप पाप जननी जनक को ।
बारे तेँ ललात बिललात द्वार द्वार दीन,
जानत हौं चारि फल चारि ही चनक को॥
तुलसी सो साहिब समर्थ को सुसेवक है,
सुनत सिहात सोच बिधि हू गनक को।
नाम, राम! रावरो सयानो किधौं बाबरो,
जो करत गिरी तेँ गरु तृन तेँ तनक को॥
मैं तुलसी मँगतों वाले कुल में जन्मा हूँ। न जन्म का बधावा बजा, जन्म सुनकर माता-पिता दोनों को पाप का परिताप हुआ। छोटे से, दरवाजे दरवाजे ललचाता रोता फिरता हूँ, दीन हूँ
चार चनों को चार फल जानता हूँ अर्थात् चार चने मिल जाने से जान जाता हूँ कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष (चारों फल) मिल गये। सो तुलसी समर्थ साहब का एक अच्छा सेवक है, जिससे करी गई सेवक की तारीफ सुनकर ब्रह्मा सराहना करते हैं और सोचने लगते हैं कि यह इतना बड़ा कैसे हो गया। हे राम! आपका नाम हल्के तिनके को पहाड़ सा भारी कर देता है
आइये चलते हैं उत्तर कांड में
कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग।
जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग॥102 ख॥
सतयुग, त्रेता और द्वापर में जो सद्गति पूजा, यज्ञ, योग से प्राप्त होती है, लोग वही सद्गति कलियुग में केवल भगवान के नाम से पा जाते हैं
अपने इष्ट का नाम अन्तर्मन में गूंजता रहे तो आनन्द ही आनन्द है
सोइ भव तर कछु संसय नाहीं
राम जी का प्रताप कलियुग में स्पष्ट दिखाई देता है
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥103 ख॥
धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) विख्यात हैं, जिनमें से कलियुग में एक चरण ही प्रधान है और वह है दान
जिस किसी प्रकार से भी दिया जाए
दान कल्याण ही करता है
चारों युगों में कुछ न कुछ अन्तर है
कल आचार्य श्री वीरेन्द्र पाण्डेय जी हम सबको छोड़ कर परम धाम चले गए
भैया अनुराग मिश्र 1983 के पिता जी भी कल गोलोकवासी हो गए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उत्तरकांड में आगे क्या बताया जानने के लिए सुनें