18.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 देशभक्ति है वही जो कर्मानुरागी की शिक्षा दे

देशभक्त को ललकारे उठ पग पग  कठिन परीक्षा दे....



प्रस्तुत है यतमानस ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 18 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  658 वां सार -संक्षेप

1=मन को वश में रखने वाला


सदाचारमय विचारों को ग्रहण  करने के लिए हम नित्य इन सदाचार वेलाओं की प्रतीक्षा करते हैं  सांसारिक प्रपंचों से इतर इन वेलाओं के प्रति हम लोगों की अनुरक्ति वास्तव में बहुत मूल्यवान है


अपने अध्यात्म को परिपोषित करने का इसे आत्मसात् करने का यह दुर्लभ अवसर हमें गंवाना नहीं चाहिए


यह हम लोगों का सौभाग्य है भगवान् हनुमान जी की विशेष कृपा है कि अतिमूल्यवान समय के कुछ क्षण आचार्य जी हमें दे देते हैं


प्रेम आत्मीयता के कारण हमारा एक दूसरे से संपर्क बना हुआ है संपर्क में यदि संकोच है तो यह द्वैत भाव दर्शाता है



आज श्रद्धेय बैरिस्टर साहब, कुछ भी यज्ञ भाव से  ही करने वाले महापुरुष,का जन्मदिन है आचार्य जी ने बताया कि विद्यालय से संबन्धित किसी भी  तप का वन्दन करने वाले महापुरुष जैसे ठाकुर साहब, शर्मा जी, जे पी जी भी के जन्मदिन पर उनके चित्र के सामने अखंड दीपक को जलाने का क्रम बना हुआ था


यह स्मरण करने का कर्म है कर्म और धर्म  प्रायः एक दूसरे के पर्याय हैं  जब कर्म और धर्म अभ्यास में आ जाते हैं तो तत्त्व के प्रति व्यक्ति के अंदर अभ्यासी आस्था हो जाती है


यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन।


कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते।।3.7।।


हे अर्जुन जो पुरुष मन  से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ कर्म इन्द्रियों से कर्मयोग का आचरण करता है  वास्तव में वह श्रेष्ठ है।

मन से वश में रखना कठिन काम है


आचार्य जी ने ठाकुर साहब के जन्मदिन का एक प्रसंग बताया


बैरिस्टर साहब के जीवन में गीता किस प्रकार अभ्यास में आई थी आचार्य जी ने कश्मीर से संबन्धित उनका एक प्रसंग बताया


और यह अभ्यास उन्हें जेल में रहते हुए हुआ था


आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में इस कामना के साथ कि कागभुशुंडी जी का ज्ञान हम लोगों में प्रवेश कर जाए


भरि लोचन बिलोकि अवधेसा। तब सुनिहउँ निर्गुन उपदेसा॥

मुनि पुनि कहि हरिकथा अनूपा। खंडि सगुन मत अगुन निरूपा॥6॥


सर्वप्रथम नेत्र भरकर श्री अयोध्यानाथ को देखकर, तब निर्गुण का उपदेश सुनूँगा। मुनि ने पुनः अनुपम हरिकथा कहकर, सगुण मत का खण्डन किया और निर्गुण का निरूपण किया



सठ स्वपच्छ तव हृदयँ बिसाला। सपदि होहि पच्छी चंडाला॥

लीन्ह श्राप मैं सीस चढ़ाई। नहिं कछु भय न दीनता आई॥8॥

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें