तुलसीदास मथुरा में बांकेबिहारी की मूर्ति देख कहते हैं-
“का बरनौं छवि आपकी, भले बने हो नाथ।
तुलसी मस्तक तब नवे, जब धनुष-बाण लो हाथ।।”
प्रस्तुत है लब्धवर्णभाज् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 20 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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*660 वां* सार -संक्षेप
1=honouring the learned
परमात्मा की कृपा से हम लोगों के लिए उपलब्ध ये सदाचार वेलाएं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं इनसे सदाचारमय विचार प्राप्त कर हम आसानी से सांसारिक समस्याओं को स्वयं सुलझा सकते हैं इसका हम जितना अनुभव करेंगे उतना ही हमारे लिए लाभकारी होगा
इसका अर्थ है हमें अपने इष्ट की भक्ति प्राप्त हो गई भक्ति अर्थात् विश्वास
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।
हे अर्जुन!
जो मुझे जैसे भजते हैं उन पर मैं उसी तरह का अनुग्रह करता हूँ
सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं
जिन भी महापुरुषों ने चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय ध्यान कर वाणी से लेखनी से हमारे सामने अद्भुत साहित्य प्रस्तुत कर दिया है हमारे पास भक्ति परंपरा में तुलसी मीरा नानक कबीर धन्ना के रूप में अद्भुत शक्ति है जिससे हमने सांसारिक समस्याओं को सुलझाया है दुष्टों को पराजित किया है
इसी तरह वास्तविक शिक्षकों ने बहुत कल्याण किया है यह परमात्मा की कृपा है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए हम इसकी संगति पाकर व्याकुल हो ही नहीं सकते
पढ़ाई लिखाई कर अर्थ कमा लेना ही हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए
हमें तो संस्कारित होना चाहिए जाग्रत होना चाहिए आत्मचिन्तन में रत होना चाहिए
अपने अन्दर का शिक्षकत्व जगाएं दान ज्ञान का दम्भ न करें तत्व में जाकर शक्ति प्राप्त करें
समाज में मची हुई उथल पुथल को समाप्त करने के लिए हम पहले अपने व्यक्तित्व का उत्कर्ष करें फिर परिवार से भावपूर्ण संबंध बनाएं
हमें इन वेलाओं के भाव ग्रहण करने चाहिए आचार्य जी ने परामर्श दिया कि यदि कहीं हम उलझाव में हैं तो उनसे परामर्श ले सकते हैं
आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में
अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई। सादर मुनि मोहि लीन्ह बोलाई॥
मम परितोष बिबिधि बिधि कीन्हा। हरषित राममंत्र तब दीन्हा॥3॥
पहले प्रभु राम का ध्यान करें
अयोध्यानगरे रम्ये रत्नमण्डपमध्यगे ।
स्मरेत्कल्पतरोर्मूले रत्नसिंहासनं शुभम् ॥ १०॥
तन्मध्येऽष्टदलं पद्मं नानारत्नैश्च वेष्टितम् । स्मरेन्मध्ये दाशरथिं सहस्रादित्यतेजसम् ॥ ११॥
और फिर राममन्त्र
*ॐ रां रामाय नमः*
*रां रामाय नमः*
श्रद्धेय अशोक जी का राममन्त्र था
जय श्री राम
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया
आज आचार्य जी ने विद्यालय से संबंधित कौन से दो प्रसंग बताए जानने के लिए सुनें