सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥
ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥
प्रस्तुत है तैजस ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 22 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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662 वां सार -संक्षेप
1 =ऊर्जस्वी
अनेक बार आचार्य जी के सामने विषम परिस्थितियां आती हैं फिर भी उन परिस्थितियों की उपस्थिति के बाद भी आचार्य जी वाणी के माध्यम से भावनात्मक रूप में हम लोगों से भगवत्कृपा से संयुत हो जाते हैं
अद्भुत है वह शक्ति और उसका प्रवाह जो यह सब करवा देती है
इन वेलाओं का उद्देश्य है कि अपने भीतर के कर्मानुराग पुरुषार्थ पराक्रम की अनुभूति हम करें
सांसारिक दम्भ को दरकिनार कर पूजा भाव से यज्ञ भाव से सेवा करें
आचार्य जी हमें मार्ग दिखा रहे हैं
हम भी नई पीढ़ी के लिए शिक्षक बनें
आचार्य जी ने बताया कि परिवार में संघर्ष से बचना है तो भगवदाश्रित होकर काम करें
परमात्मा ही सब करता है यह भाव आने पर प्रेम आत्मीयता का समावेश हो जाता है संघर्ष समाप्त हो जाता है
भक्ति का आधार प्रेम है
यह रहस्य रघुनाथ कर बेगि न जानइ कोइ।
जो जानइ रघुपति कृपाँ सपनेहुँ मोह न होइ॥116 क॥
रहस्य यह है कि ज्ञान के भंडार परमात्मा को भक्ति प्रिय है लेकिन ज्ञान के मार्ग को उसने कठिन बना दिया
कहहिं संत मुनि बेद पुराना। नहिं कछु दुर्लभ ग्यान समाना॥
सोइ मुनि तुम्ह सन कहेउ गोसाईं। नहिं आदरेहु भगति की नाईं॥5॥
गरुड़ जी! ज्ञान और भक्ति का और भी भेद सुन लीजिए जिसके सुनने से श्रीराम जी के चरणों में सदा अविच्छिन्न प्रेम हो जाता है
करपात्री जी महाराज के ग्रंथ मार्क्सवाद और रामराज्य की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया भारतीय संस्कृति क्यों विशेष है
दुष्टों को अवतार आदि समझ में नहीं आ सकते
पाश्चात्य दर्शन दर्शन न होकर प्रदर्शन है
परमात्मा अनेक रूपों में उत्पन्न होते हैं अग्नि जल देवता हैं
वेद कहता है भगवान् माया के संयोग से अनेक रूप धारण करते हैं
तुलसीदास जी भी अवतार ही हैं
परिवारों में प्रसरित होती रही भाव और भक्ति के कारण भारतीय संस्कृति सुरक्षित रही है इसके लिए आचार्य जी ने अपने बचपन का एक प्रसंग बताया वह प्रसंग क्या था उत्तरकांड में आचार्य जी ने आगे क्या बताया जानने के लिए सुनें