चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ। प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ॥
उमा राम बिषइक अस मोहा। नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा॥
प्रस्तुत है यतव्रत ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 23 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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663 वां सार -संक्षेप
1 =अपने व्रत को पूरा करने वाला
भारत में परब्रह्म के स्वरुप के बारे में कई विचारधाराएं हैं जिसमें (माधवाचार्य )द्वैत, (रामानुजाचार्य )विशिष्टाद्वैत, (शंकराचार्य) केवलाद्वैत, (निम्बक )द्वैताद्वैत , (वल्लभाचार्य )शुद्धाद्वैत आदि कई विचारधाराएँ हैं। इतनी विचारधाराएँ होने पर भी सभी यह मानते है कि भगवान ही इस सृष्टि का नियंता है।
किसी भी ऋषि की विचारधारा का अवगाहन करें तो लगता है यही सही है
यानि सभी सही हैं
आज तुलसीदास जी (रामानुज -रामानन्द -नरहरिदास-तुलसीदास )के विशिष्टाद्वैत दर्शन की चर्चा होगी
मां सती शरीर त्यागने पर मां पार्वती के रूप में उत्पन्न हुईं
जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥
तो वह रामकथा सुनना चाहती हैं
शिव जी समझ रहे हैं मां भवानी में रामात्मक भाव के प्रति आर्त जिज्ञासा है
रामात्मक भाव जिनमें प्रवेश कर जाता है तो समझिए उसे सब कुछ मिल गया
सामान्य जन कथा में आनन्द लेते हैं उनके लिए अद्भुत अप्रतिम शौर्य तप पराक्रम वाले राम भरत के भाई दशरथ के पुत्र हैं वे तत्त्व को नहीं समझते
तत्त्व समझने वाले आत्मानन्द में एकान्त की तलाश करते हैं
रामपद के प्रति स्नेह अनन्त हो जाए तो वह भक्ति में रम जाता है
रां रामाय नमः
सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥
ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥
शिष्य गरुड़ से गुरु कागभुशुंडी जी कह रहे हैं
हे तात! यह अकथनीय कहानी सुन लें
यह समझने में तो आती है,इसकी अभिव्यक्ति नहीं हो सकती जिन्हें अनुभूति अभिव्यक्ति दोनों मिल जाती है वो ऋषि हो जाते हैं
जीव ईश्वर का अंश है। इसलिए वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि है॥
हम ईश्वर का अंश है माया में बहुत अधिक लिप्त हैं
सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं॥
जीव मायावश होता है परमात्मा राम मायावश नहीं होते
आचार्य जी ने एक संन्यासी फोटोग्राफर का रोचक प्रसंग बताया वह प्रसंग क्या था
मीराबाई ने तुलसीदास जी को पत्र लिखा था उसमें क्या लिखा था
आदि जानने के लिए सुनें