24.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥



प्रस्तुत है लेलिहान -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 24 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  664 वां सार -संक्षेप

1 लेलिहानः= सर्प (भाव :आस्तीन के सांप )


जीवन एक अद्भुत कथा है प्रातःकाल हम लोग इन वेलाओं से सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं हम इनका लाभ उठाकर सांसारिक समस्याओं को आसानी से सुलझा सकते हैं

सांसारिक समस्याओं से बोझिल होने के बाद भी हम आनन्दित रहें प्रसन्नता की अभिव्यक्ति करें तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है

तब हमें यह संसार आनन्द का आगार लगेगा

हमें बच्चों की तरह जीवन नहीं जीना है जो संसार को सत्य मानते हैं

अपनी कथा स्वयं सुनें और आनन्द प्राप्त करें

हम आत्मविश्वासी बनें जैसा आत्मविश्वास प्रभु राम में था


रामत्व ईश्वरत्व का अद्भुत उदाहरण है कि जब भगवान् राम ने वन जाते समय सेना के लिए मना कर दिया था (कम्ब रामायण )

अद्भुत आत्मविश्वास


ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥


जीव ईश्वर का अंश है। इसलिए वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि है॥


उच्च कोटि के विद्वान रामपदार्थ दास जी विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त में बहुत सुन्दर व्याख्या करते थे


ईश्वर अर्थात् ब्रह्म जीव माया तीनों तत्त्व हैं  एक ही से निकले हैं कोई भी मिथ्या नहीं है 

ज्ञान के भंडार भक्ति के आगार भाव के संसार सांसारिक विचारों के आधार तुलसी जी का निम्नांकित छंद अद्भुत है 

आगें रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें॥

उभय बीच सिय सोहति कैसें। ब्रह्म जीव बिच माया जैसें॥1॥

यह त्रिगुण जो वन में जा रहा है सबके अपने अपने स्वरूप हैं लेकिन स्वभाव एक है

आचार्य जी ने लक्ष्मण जी से सीता जी द्वारा पानी मंगाने वाला  और राम जी के कंटक लगने वाला प्रसंग बताया

हर कोई एक दूसरे की चिन्ता कर रहा है कोई एक दूसरे से अलग नहीं है




जिव जब ते हरि ते बिलगान्यो l 

 तबते देह गेह निज जान्यो ।

 मायावस स्वरूप विसरायो ।

 तेहि भ्रमते दारुन दुख पायो ।


विस्मृति दवाई भी है और रोग भी है अगर तत्त्व को भूलते हैं तो हम रोगी हो जाते हैं और संसार को भूलने पर रोगमुक्त हो जाते हैं

इस विस्मृति के लिए भक्तिमय भावमय जीवन जीने की प्रार्थना आवश्यक है

शरीर सत्य नहीं है अगर होता तो मरने पर जब हमारा शरीर वहां उपस्थित है तो हमारे अपने लोग क्यों रोएं


आचार्य जी ने सात्विक श्रद्धा को स्पष्ट किया

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें