प्रस्तुत है निधि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 25 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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665 वां सार -संक्षेप
1=सद्गुण सम्पन्न व्यक्ति
सदाचार का व्रत लेकर नित्य आचार्य जी हम लोगों को सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित करते हैं
इस भाव यज्ञ की सुगंध से हमें सुवासित करते हैं ताकि हम संसार की समस्याओं का समाधान बन सकें
संसार समस्या है तो हम हैं समाधान,
हम नीति नियन्ता अनुशासन हम संविधान,
हम आत्मज्योति अव्यक्त शक्ति कर्मानुराग
हम अम्बर की शहनाई धरती का सुहाग।
हम मानव हैं मानवता ही पहचान हमारी है,
हम से ही शोभित हुई सृष्टि की क्यारी है।
अद्भुत है यह कविता तभी तो
कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है
हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है....
हमसे ही सृष्टि की क्यारी शोभित है हमें इसके लिए अब भी प्रयासरत रहना है
सत्कर्म सद्धर्म सदाचरण के लिए अपने शरीर को उसी प्रकार ढालना होता है अन्यथा शरीर तो श्रीमान है वह सुख चाहता है भ्रान्ति में जीता है
लेकिन ऐसे भी उदाहरण हैं जिनके शरीर उनके अनुकूल हो गए जैसे रामकृष्ण परमहंस
हम सिद्धयोगी तो नहीं हैं लेकिन सिद्धि को स्वीकारते हैं यानि संस्कारों के प्रति हमारा लगाव रहता है
आजकल हम लोग उत्तरकांड में प्रविष्ट हैं तुलसीदास जी विलक्षण कवि हैं जिनकी एक से बढ़कर एक अप्रतिम रचनाएं हैं वेद भी अद्वितीय हैं अपौरुषेय हैं अपौरुषेयता पुरुषत्व की प्रतीति है पुरुष परमपुरुष का अंश है और पुरुष उसका अंश है यह ज्ञानियों को तब समझ में आता है जब उन्हें सात्विक श्रद्धा मिल जाती है
कुछ मिल जाए यह सात्विक श्रद्धा नहीं है कुछ मिल जाने वाली इच्छा ही संसार है यही माया से लिपटना है
भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी॥3॥
यह संसार का व्यवहार करणीय है लेकिन तत्त्व शक्ति सात्विकता को जान लेने पर हम असफल होने पर निराश नहीं होंगे सफल होने पर इतराएंगे नहीं
हम तत्त्व हैं शरीर हमसे अलग है शरीर को स्वयं समझना ही सांसारिकता है माया है
कागभुशुंडी जी कहते हैं
सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। जौं हरि कृपाँ हृदयँ बस आई॥
जप तप ब्रत जम नियम अपारा। जे श्रुति कह सुभ धर्म अचारा॥5॥
आचार्य जी ने सात्विक श्रद्धा को स्पष्ट किया
तेइ तृन हरित चरै जब गाई। भाव बच्छ सिसु पाइ पेन्हाई॥
नोइ निबृत्ति पात्र बिस्वासा। निर्मल मन अहीर निज दासा॥6॥
नोई गाय के दुहते समय पिछले पैर बाँधने की रस्सी है
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया
डा अमित जी के किस अद्भुत भाव की आचार्य जी ने चर्चा की जानने के लिए सुनें