अप्प दीपो भव
(भगवान् बुद्ध द्वारा शिष्य आनन्द के प्रश्न का उत्तर)
प्रस्तुत है सस्यक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 26 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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666 वां सार -संक्षेप
1=सद्गुणों से युक्त
आत्मस्थ होकर हम विचार करें तो हम देखेंगे न हम शरीर हैं न मन न बुद्धि न विचार न संबंध और न ही संसार हैं
हम तत्त्व हैं जो तत्त्व है वही सत्य है जो सत्य है वही तत्त्व है
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥
'सोऽहमस्मि' (वह ब्रह्म मैं ही हूँ) यह जो कभी न टूटने वाली वृत्ति है, वही उस ज्ञान के दीपक की परम प्रचंड लौ है। इस तरह जब आत्मानुभूति के सुख का सुंदर प्रकाश प्रसरित होता है, तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो जाता है
यह संसार सराय है
यह उत्तरकांड की अद्भुत चौपाई है
श्री रामचरित मानस जैसे प्रेरणा के आधार ग्रंथों से हम लोग बहुत कुछ पा सकते हैं
हम लोग सदाचारमय जीवन जीने के लिए इन प्रसंगों का संस्पर्श करते चलते हैं ज्ञानियों चिन्तकों योगियों तपस्वियों के लिए ये प्रसंग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और चर्चा के विषय हैं
उनके लिए आत्मा के सप्त प्रस्थान हैं
सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। जौं हरि कृपाँ हृदयँ बस आई॥
जप तप ब्रत जम नियम अपारा। जे श्रुति कह सुभ धर्म अचारा॥5॥
का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने सातों प्रस्थान बताए
आचार्य जी ने विमल वैराग्य को स्पष्ट किया
इस शरीर में रहते हुए भी कुछ न चाहने का भाव
छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई। तब यह जीव कृतारथ होई॥
छोरत ग्रंथ जानि खगराया। बिघ्न नेक करइ तब माया॥3॥
यदि विज्ञान रूपिणी बुद्धि उस गाँठ को खोल ले तो यह जीव कृतार्थ हो,लेकिन हे पक्षीराज जी! गाँठ खोलते हुए जानकर माया फिर अनेक विघ्न करने लगती है
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया
अकबर का क्या हाल है?
क्या हमारे शत्रु हो?किसने कहा
आदि जानने के लिए सुनें