27.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय। 


‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥ 


यदि मानव एक स्थान पर रुककर बैठ जाय तो वह वहीं की माया में फँसकर  परमात्मा के घर से विमुख हो जाता है। इसके उलट यदि मानव घर छोड़ देता है तो उसका घर ही बिगड़ जाता है, इसलिए तुलसी कहते हैं कि भगवान् राम का प्रेम - नगर बना कर घर और वन दोनों में समान रूप से रहो, पर आसक्ति किसी में न रखो।


प्रस्तुत है पुरुष -शार्दूल ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 27 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  667 वां सार -संक्षेप

1=पूज्य व्यक्ति


प्रायः सारे जीव सुख चाहते हैं  ये सात्विक श्रद्धा से युक्त नहीं हैं ये मायामय जीव हैं इस मायामय जीवन में हमें पुरुषार्थ के दर्शन करने चाहिए  एकान्त के लिए कुछ समय निकालें एकान्त में अनुभूति करें अभाव प्रभाव निन्दा प्रशंसा में समान भाव रहे मैं कौन हूं यह प्रश्न करें

अप्प दीपो भव

सो ऽहम् तब यह जीव कृतार्थ हो जाता है


छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई। तब यह जीव कृतारथ होई॥

छोरत ग्रंथ जानि खगराया। बिघ्न नेक करइ तब माया॥3॥

प्रकृति मेरी मां है परमात्मा मेरा पिता है इनके संयोग से मेरा मनुष्य रूप में जन्म हुआ है यदि मनुष्य मनुष्यत्व की अनुभूति नहीं कर पा रहा है तो माया आवश्यकता से अधिक लिपटी है


भगवान् राम की कृपा हनुमान जी की कृपा गुरु की कृपा पाकर तुलसीदास जी ने ज्ञान का दीपक जलाया


सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। जौं हरि कृपाँ हृदयँ बस आई॥

जप तप ब्रत जम नियम अपारा। जे श्रुति कह सुभ धर्म अचारा॥5॥


तीनि अवस्था तीनि गुन तेहि कपास तें काढ़ि।

तूल तुरीय सँवारि पुनि बाती करै सुगाढ़ि॥117 ग॥


जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति की तीनों अवस्थाएँ और सत रज  तम तीनों गुण रूपी कपास से तुरीय अवस्था रूपी रूई को निकालकर,सँवारकर उसकी सुंदर कड़ी बत्ती बनाएँ


बत्ती ही जलेगी बत्ती तैल का शोषण करके जलेगी जब तैल समाप्त होगा तो स्वयं जलेगी

तैल प्राणिक ऊर्जा है प्रकाश करता है इस प्रकाश से यदि हमें ज्ञान हो जाए तो हमें कुछ नहीं चाहिए


माया अनेक विघ्न करती है संसार का खेल सबके विरक्त होने पर नहीं चल सकता है

सभी ज्ञानी नहीं हो सकते


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि

ग्राम का पलायन रोकने की दिशा में युगभारती काम करे हम अपनी परम्परा को जानें

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया


भैया विवेक सचान के पिता जी श्री वंशलाल जी, मृणाल जी, वलीरमानी जी, शैलेन्द्र जी की चर्चा क्यों की आज कहां कार्यक्रम है 

जानने के लिए सुनें