28.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी/नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सेवक सेब्य भाव बिनु भव न तरिअ उरगारि।

भजहु राम पद पंकज अस सिद्धांत बिचारि॥119 क॥



हे उरग अर्थात् सर्प के शत्रु गरुड़ जी! मैं सेवक हूँ और भगवान मेरे स्वामी हैं, इस महत्त्वपूर्ण भाव के अभाव में संसार रूपी समुद्र से पार पाना संभव नहीं । ऐसे सिद्धांत का चिन्तन मनन कर प्रभु राम जी के चरण कमलों का भजन  करें


प्रस्तुत है पुरुष -व्याघ्र ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी/नवमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 28 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  668 वां सार -संक्षेप

1=पूज्य व्यक्ति


INTERNATIONAL YEAR OF 

MILLETS 2023  को मनाते हुए कल सरौंहां में एक कार्यक्रम 

'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजनान्तर्गत पात्र कृषकों के संतृप्तीकरण हेतु बृहद ग्राम पंचायत स्तरीय शिविर ' हुआ

ग्राम से पलायन रोकना उद्देश्य था इसके अन्तर्गत गांव के नौजवानों का एक समूह बनाया गया है


एक  दृढ़  संकल्प लें कि किसी भी तरह के छोटे कारणों से  बड़े कार्य बाधित न हों

नित्य साधना के कार्य सत्कार्य बाधित न हों


मन के उत्साह को कम न करें

उत्साहित मन हो तो शरीर भी  बहुत सक्षम रहता है


श्री रामचरित के सूत्र सिद्धान्त अद्भुत हैं और हम लोगों के लिए मानने योग्य हैं

इनका अनुसरण करने पर समस्याओं के आने पर हमें तनिक भी भय भ्रम नहीं रहेगा

आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में 


कहत कठिन समुझत कठिन साधत कठिन बिबेक।

होइ घुनाच्छर न्याय जौं पुनि प्रत्यूह अनेक॥118 ख॥



ज्ञान समझाने  समझने में कठिन है साधने में भी कठिन है। यदि घुणाक्षर न्याय से संयोग के कारण शायद यह ज्ञान हो भी जाए, तो  उसे बचाए रखने में अनेक विघ्न आ जाते हैं


अविद्या का संसार विचित्र है अविद्या अनित्य को नित्य समझती है क्षरणशील मरणशील को शाश्वत समझने की भूल करती है


सुख के साधनों में इसकी तृष्णा रहती है  और सबसे अधिक अभिनिवेश अर्थात् 

मृत्यु के भय से होनेवाला कष्ट या क्लेश( जो योग-शास्त्रों में पाँच क्लेशों में से एक माना गया है)उसे सताता है जब कि मरना आवश्यक है


इस अविद्या के संसार में सभी तैर रहे हैं


ज्ञान का मार्ग दुधारी तलवार की धार की तरह  है।

हे पक्षीराज! इस पथ से गिरते देर नहीं लगती। जो इस पथ को निर्विघ्न निबाह ले जाता है, वही मोक्ष प्राप्त करता है


आचार्य जी ने एक विद्यार्थी का प्रसंग बताया जिसने कहा था फेल होना जरूरी है



इंद्री द्वार झरोखा नाना। तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना॥

आवत देखहिं बिषय बयारी। ते हठि देहिं कपाट उघारी॥6॥

का विस्तार करते हुए आचार्य जी ने बताया नारद जी में कैसे काम उत्पन्न हो गया जब कि नारद का हित वैराग्य में है


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया

भैया आलोक सांवल जी का कौन सा प्रसंग बताया


मोक्ष में भक्ति के बिना टिके रहना संभव नहीं इसको आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब के किस प्रसंग से संयुत किया

जानने के लिए सुनें