प्रस्तुत है पुरुष -पुङ्गव ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 30 -05- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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*670 वां* सार -संक्षेप
1=श्रेष्ठ पुरुष
आइये सदाचार वेला में उपस्थित होकर आचार्य जी से सदाचारमय विचार ग्रहण करें ताकि हम गम्भीर से गम्भीर संकट का आसानी से सामना कर सकें भय और भ्रम से मुक्त होकर अपने जीवन को संवार सकें
शिक्षक की भूमिका में आकर नई पीढ़ी का मार्गदर्शन कर सकें
हम लोग उत्तरकांड के ज्ञान भक्ति वाले अद्भुत विवेचन में प्रविष्ट हैं
ग्यान पंथ कृपान कै धारा। परत खगेस होइ नहिं बारा॥
जो निर्बिघ्न पंथ निर्बहई। सो कैवल्य परम पद लहई॥1॥
ज्ञान का पथ कृपाण की धार के समान है। इस पथ से च्युत होने में देर नहीं लगती। लेकिन जो इस पथ को निर्विघ्न निबाह ले जाता है, वही कैवल्य रूप परमपद पा लेता है
ज्ञानी जिज्ञासु होता है भक्त विश्वासी होता है ज्ञान में तर्क तो भक्ति में भरोसा है
भक्ति ऐसा विश्वास है जिसमें शक्ति सेवा सामर्थ्य सदाचार संयम आदि बहुत कुछ है
आज के समय की पुकार है हमें राष्ट्र-भक्त बनना चाहिए
आचार्य जी ने भक्ति शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि भज् धातु का अर्थ सेवा करना भजना इष्टदेव में आसक्ति होना है
84 सूत्र वाले ग्रंथ नारदभक्तिसूत्र के अनुसार भक्ति
*यत्प्राप्य न किन्चिद्वाञ्छति न शोचति न द्वेष्टि न रमते नोत्साही भवति*
प्राप्त करने के बाद मनुष्य संतृप्त और अमर हो जाता है
व्यास जी ने पूजा में अनुराग को भक्ति कहा
गर्गाचार्य के अनुसार कथा श्रवण में अनुरक्ति ही भक्ति है
भारत के धार्मिक साहित्य में भक्ति का उदय वैदिक काल से ही है
सगुण और निर्गुण दोनों तरह की भक्ति है
हमारे यहां भक्ति का विशाल साहित्य है
श्रीमद्भागवत महापुराण भक्ति का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है
इसका दसवां स्कंध अद्भुत है आनन्दित कर देता है
अस बिचारि हरि भगत सयाने। मुक्ति निरादर भगति लुभाने॥
भगति करत बिनु जतन प्रयासा। संसृति मूल अबिद्या नासा॥4॥
ऐसा विचार कर बुद्धिमान हरिभक्त भक्ति की ओर आकर्षित होकर मुक्ति का तिरस्कार कर देते हैं।
ऎसा तेरा लोक, वेदना
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं
जिसने जाना मिटने का स्वाद!
क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरे मिटने क अधिकार
भक्ति इसी शरीर में होती है मरणधर्मा शरीर भक्ति का आधार है
शंकराचार्य ने ज्ञान की मशाल जलाई लेकिन भक्ति पर वे न्यौछावर हो गए
धन भक्ति से दूर करता है
सेवाभाव के उदय होने पर भक्ति का उदय होता है
भक्ति ढोंग नहीं है
इसके अतिरिक्त द्वारपाल की अभ्यर्थना से क्या तात्पर्य है
आचार्य जी ने नए संसद भवन की चर्चा क्यों की
आदि जानने के लिए सुनें