जब असमय कोई सुमन वृक्ष का झर जाता,
आहत वह शाखा मन मसोस कर रह जाती,
पत्तियाँ सिसकतीं रह रह कर पूरे जीवन,
फलहीन वृक्ष की व्यथा जिंदगी सँग जाती।
प्रस्तुत है ज्ञान -अभिधानकोश ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 02 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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673 वां सार -संक्षेप
1=ज्ञान का शब्दकोश
हमारे लिए अनुकूल और उपादेय सदाचारमय विचारों को लेकर आचार्य जी एक बार फिर से उपस्थित हैं
सांसारिक प्रपंचों से मुक्त होना और उनमें लिप्त होना चलता रहता है
संसार सागर के समान है कभी हमें ऊपर ले जाता है कभी नीचे ढकेल देता है
कोई भी प्रतिकूल घटना संवेदनशील व्यक्ति को बहुत व्यथित करती है
ऐसी ही कल एक दुर्घटना में अपने विद्यालय की 2023 बैच की बहन ईशा पटेल का आकस्मिक निधन हो गया
इस घटना ने हम सबको झकझोर दिया क्योंकि हमारी भावनाएं विद्यालय से संयुत हैं ऐसी कोई भी सूचना व्यथित करती है
परमात्मा से यही प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करे और परिवार को इस असहनीय आघात को सहन करने की शक्ति दे
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
प्रार्थना ही भक्ति का आधार है ज्ञान में दम्भ हो जाता है भक्ति में समर्पण विश्वास है
ज्ञान में चिन्तन है ज्ञानी संकटों से भी गुजरता है भक्त का भावनाओं से विश्वास से योग रहता है भक्ति योग अद्भुत है
यह नर तन में ही संभव है इस नर को विप्रत्व भी चाहिए
आचार्य जी ने दरिद्रता और निर्धनता में कल अन्तर बताया था
कागभूशुंडी जी पूर्व जन्म की चर्चा करते हुए कहते हैं
तेहिं कलिकाल बरष बहु बसेउँ अवध बिहगेस।
परेउ दुकाल बिपति बस तब मैं गयउँ बिदेस॥104 ख॥
गयउँ उजेनी सुनु उरगारी। दीन मलीन दरिद्र दुखारी॥
दारिद्र्य अर्थाभाव नहीं है
आचार्य जी ने सुदामा जी का प्रसंग बताया पत्नी के आग्रह पर गए सुदामा विरक्ति भाव से ही रहते हैं यद्यपि हमें भ्रम है क्योंकि नरोत्तम दास जी की स्वयं की कल्पना से उपजा सुदामा चरित श्रीमद्भागवत से भिन्न है
सुदामा जी कर्म के लिए ही जन्मे थे सुदामा दरिद्र नहीं थे निर्धन थे आचार्य जी ने कवि प्रमोद तिवारी जी की भी चर्चा की जिन्होंने सुदामा पर लेख लिखा था
दरिद्रता वहां होती है जहां संतुष्टि नहीं होती है
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें